Monthly Archives: June 2023

१.२८ – कृपया परयाविष्टो

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श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

<< अध्याय १ श्लोक २७

श्लोक

कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्‌ ।
अर्जुन उवाच
दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌ ৷৷

पद पदार्थ

परया कृपया आविष्ट: – दया से अभिभूत होकर
विषिदन – दुःखित होकर
इदं – इस प्रकार से
अब्रवीत्‌ – कहा
कृष्ण – हे कृष्ण !
युयुत्सुं – युद्ध करने की इच्छा से
समुपस्थितम्‌ – मेरे सामने खड़े हुए
इमं स्वजनं – मेरे ही रिश्तेदार
दृष्ट्वा – देखकर

सरल अनुवाद

दया से अभिभूत होकर तथा दुःखित होकर अर्जुन ने कृष्ण से कहा ,” हे कृष्ण ! मेरे ही रिश्तेदार युद्ध करने की इच्छा से
मेरे सामने खड़े हुए देखकर….”

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १ श्लोक २९

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१.२७ – श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव

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श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

<< अध्याय १ श्लोक २६

श्लोक

श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयो: उभयो: अपि |
तान्‌ समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धून्‌ अवस्थितान्‌ ৷৷

पद पदार्थ

श्वशुरान्‌ – ससुर
सुहृद: – शुभचिन्तक
उभयो: अपि सेनयो: – दोनों सेनाओं में
स कौन्तेय – कुन्तीपुत्र अर्जुन
अवस्थितान्‌ – जो भी युद्ध के लिए इकट्ठे हुए हैं
तान्‌ बन्धून्‌ – उन रिश्तेदारों को
समीक्ष्य – अच्छी तरह से देखा

सरल अनुवाद

कुन्तीपुत्र अर्जुन, अपने ससुर और शुभचिंतकों को दोनों सेनाओं में देखा | उसने उन सारे रिश्तेदारों को देखा जो भली भांति युद्ध करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १ श्लोक २८

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