श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व – अध्याय ४ (ज्ञान योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ३ गीतार्थ संग्रह के आठवें श्लोक में, आळवन्दार चौथे अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “चौथे अध्याय में, कर्म योग (जिसमें ज्ञान योग भी शामिल है) जिसे ज्ञान योग के रूप में ही समझाया गया है, कर्म योग की प्रकृति … Read more

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 4 (ஞான யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 3 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் எட்டாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் நான்காம் அத்யாயத்தின் கருத்தை “ஞான யோகத்தை உள்ளடக்கிய கர்ம யோகம் என்பது ஞான யோகமே என்றும் , கர்ம யோகத்தின் தன்மை மற்றும் உட்பிரிவுகள், உண்மையான அறிவின் மகத்துவம் மற்றும் (ஆரம்பத்தில், எம்பெருமானின் வார்த்தைகளின் நம்பகத்தன்மையை நிறுவ) தற்செயலாக விளக்கப்பட்டுள்ள அவனுடைய அவதார நிலையிலும் மாறாத … Read more

४.४२ – तस्मात् अज्ञानसम्भूतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ४१ श्लोक तस्मादज्ञानसम्भूतं  हृत्स्थं  ज्ञानासिनात्मनः ।छित्त्वैनं  संशयं  योगमातिष्ठोत्तिष्ठ  भारत ॥ पद पदार्थ भारत – हे भरत वंश के वंशज!तस्मात् – क्यों कि पहले बताए गए कर्म योग से कोई मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है [ज्ञान के बिना केवल कर्म … Read more

४.४१ – योगसन्यस्तकर्माणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ४० श्लोक योगसन्यस्तकर्माणं  ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् ।  आत्मवन्तं  न कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय ॥ पद पदार्थ धनंजय – हे अर्जुन !योग सन्यस्त कर्माणं – जिसने पहले बताए गए बुद्धि योग को सुनकर केवल  कर्म को त्याग दिया हैज्ञान सञ्छिन्न संशयं  – जो आत्म ज्ञान … Read more

४.४० – अज्ञश् चाश्रद्दधानश् च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३९ श्लोक अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।नायं  लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥ पद पदार्थ अज्ञ: च – जो आत्म ज्ञान (जिसे विद्वानों के निर्देशों द्वारा प्राप्त किया जाता है) से रहित है अश्रद्दधान: – जिसकी रुचि नहीं है (ऐसे साधनों … Read more

Essence of SrI bhagavath gIthA – Chapter 4 (gyAna yOga)

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Essence of SrI bhagavath gIthA << Chapter 3 In the Eighth SlOkam of gIthArtha sangraham, ALavandhAr explains the summary of fourth chapter saying “In the fourth chapter, karma yOgam (which includes gyAna yOgam) which is explained as gyAna yOgam itself, the nature and sub-divisions of … Read more

४.३९ – श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३८ श्लोक श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं  तत्परः संयतेन्द्रियः ।ज्ञानं लब्ध्वा परां  शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ पद पदार्थ श्रद्धावान् – जो इच्छुक  है (आत्मज्ञान को बढ़ाने में )तत्परः – उसमे पूरा ध्यानकेंद्रित होकर संयतेन्द्रियः – अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना (अन्य पहलुओं से)ज्ञानं लभते – जल्द ही स्वयं … Read more

४.३८ – न हि ज्ञानेन सदृशं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३७ श्लोक न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।तत्स्वयं  योगसंसिद्ध: कालेनात्मनि विन्दति ॥ पद पदार्थ इह – इस दुनिया मेंज्ञानेन सदृशं – आत्म ज्ञान के समान पवित्रम् – शुद्ध करने वालान विद्यते – (कोई अन्य विकल्प)  नहीं हैतत्  – ऐसा ज्ञानस्वयं … Read more

४.३७ – यथैधांसि समिद्धोSग्निर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३६ श्लोक यथैधांसि समिद्धोSग्निर्भस्मसात् कुरुतेऽर्जुन ।ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !समिद्धा : अग्नि: – भीषण आग एधांसि –  लकड़ीयथा भस्मसात्  कुरुते – जिस प्रकार राख में  बदल देता  है  तथा – उसी प्रकारज्ञान अग्नि: – ज्ञान … Read more

४.३६ – अपि चेदसि पापेभ्यः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३५ श्लोक अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।सर्वं  ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं  सन्तरिष्यसि ॥  पद पदार्थ सर्वेभ्य:पापेभ्य: – सभी पापियों सेपापकृत्तमः: अपि चेत् असि – भले ही तुम बड़े पापी होसर्वं वृजिनं – वे सभी पापों के सागर ज्ञानप्लवेन एव – स्वयं के … Read more