४.१८ – कर्मण्यकर्म य: पश्येत्
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १७ श्लोक कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य: |स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त: कृत्स्नकर्मकृत् || पद पदार्थ कर्मणि – कर्म में ( जो कार्य करते हैं )अकर्म – आत्म ज्ञान ( स्वयं के बारे में ज्ञान ) जो कर्म से अलग … Read more