४.१८ – कर्मण्यकर्म य: पश्येत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १७ श्लोक कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य: |स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त: कृत्स्नकर्मकृत् || पद पदार्थ कर्मणि – कर्म में ( जो कार्य करते हैं )अकर्म – आत्म ज्ञान ( स्वयं के बारे में ज्ञान ) जो कर्म से अलग … Read more

४.१७ – कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १६ श्लोक कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मण: |अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गति: || पद पदार्थ हि – क्योंकिकर्मण: अपि – कर्म की प्रकृति मेंबोद्धव्यं – जानने योग्य पहलू कई हैंविकर्मण: – विभिन्न प्रकार के कर्म मेंबोद्धव्यं – जानने योग्य … Read more

४.१६ – किं कर्म किम् अकर्मेति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १५ श्लोक किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिता: |तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् || पद पदार्थ कवय: अपि – बुद्धिमान भीकिं कर्म – कर्म क्या है ( जो मुमुक्षु को करना चाहिए )अकर्म किं – ज्ञान क्या है ( जो कर्म … Read more

४.१५ – एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १४ श्लोक एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभि: |कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वै: पूर्वतरं कृतम् || पद पदार्थ एवं ज्ञात्वा – मुझे इस प्रकार जानकर ( और इन सारे पापों से विमुक्त होकर )पूर्वै: मुमुक्षुभि: अपि – पूर्वज जो मुमुक्षु थे … Read more

४.१४ – इति मां योऽभिजानाति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १३.५ श्लोक इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते || पद पदार्थ इति – इस प्रकारमाम् – मुझेय: – जो भीअभिजानाति – अच्छी तरह जानता हैस: – वोकर्मभि: – पाप ( जो कर्म योग करने मे बाधा हो )न बध्यते – … Read more

४.१३.५ – न मां कर्माणि लिम्पन्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १३ श्लोक न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा | पद पदार्थ कर्माणि – सृष्टि जैसे कार्य इत्यादिमाम् – मैं ( जो सर्वेश्वर हूँ )न लिम्पन्ति – से बंधा नहीं हूँमे – मुझे ( जो अवाप्त समस्त काम (किसी … Read more

४.१३ – चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १२ श्लोक चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: |तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् || पद पदार्थ चातुर्वर्ण्यं – समस्त जगत जो चार वर्णों के अध्यक्ष में है ( चार श्रेणी – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र )मया – मेरे द्वारा , … Read more

४.१२ – काङ्क्षन्त: कर्मणां सिद्धिं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ११ श्लोक काङ्क्षन्त: कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवता: |क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा || पद पदार्थ इह – (सभी) इस दुनिया मेंकर्मणां – कर्मों के ( कार्य )सिद्धिं – परिणामकाङ्क्षन्त: – के इच्छुकदेवता: – सभी देवताओं को , इंद्र … Read more

४.११ – ये यथा मां प्रपद्यन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १० श्लोक ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: || पद पदार्थ ये – वेमाम् – मुझेयथा – जिस प्रकार वे कामना करते हैंप्रपद्यन्ते – मेरा आश्रयण करते हैंतथा एव – ( मैं उपलब्ध होता हूँ … Read more

४.१० – वीतरागभयक्रोधा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ९ श्लोक वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता: |बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावम् आगता: || पद पदार्थ ज्ञान तपसा पूता: – अवतार रहस्य ज्ञान ( भगवान की अवतारों का सत्य जानकर ) की तपस्या से सादन की प्राप्ति के बाधाओं को हटाकेबहव: – कईमाम् … Read more