श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ५ (कर्म सन्यास योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ४ गीतार्थ संग्रह के नौवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के पांचवे अध्याय की सार को दयापूर्वक समझाते हैं , ” पांचवे अध्याय में कर्म योग के उपयोगिता , लक्ष्य को शीघ्रता से प्राप्त करने का इसका पहलू , उसके … Read more

५.२९ – भोक्तारं यज्ञतपसां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २८ श्लोक भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ पद पदार्थ यज्ञतपसां भोक्तारं – वो जो यज्ञ और तपस को स्वीकार करते हैंसर्व लोक महेश्वरं – सभी लोकों के सर्वेश्वरसर्वभूतानां सुहृदं – सभी जीवों के मित्रमां – मुझेज्ञात्वा … Read more

५.२८ – यतेन्द्रियमनोबुद्धि:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २७ श्लोक यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥ पद पदार्थ यतेन्द्रिय मनोबुद्धि: – नियंत्रित इंद्रिय, मन और बुद्धि के साथ [ आत्म संबंधित विषयों के अलावा अन्य सभी वस्तुओं से दूर रहना ]विगतेच्छाभयक्रोध: – वासना [ उन वस्तुओं के … Read more

५.२७ – स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २६ श्लोक स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: |प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ || पद पदार्थ बाह्यां स्पर्शान् – इन्द्रिय वस्तुओं के बाहरी संपर्कबहि: कृत्वा – बंद करकेचक्षु: च – दोनों आँखों कोभ्रुवो: अन्तरे एव ( कृत्वा ) – भौंहों के बीच स्थिर रखकेनासाभ्यन्तर … Read more

५.२६ – कामक्रोधवियुक्तानां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २५ श्लोक कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् |अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विजितात्मनाम् || पद पदार्थ काम क्रोध वियुक्तानां – वासना और क्रोध से रहितयतीनां – कामुक सुख से रहितयतचेतसां – अनन्य रूप से आत्मा पर ध्यान केंद्रित होते हुएविजितात्मनां – कर्म योगी के … Read more

५.२५ – लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २४ श्लोक लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणम् ऋषय: क्षीणकल्मषा: |छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: || पद पदार्थ छिन्नद्वैधा – [ गर्मी – सर्दी इत्यादि ] जैसे जोड़ियों से मुक्त होकरयतात्मान: – अनन्य रूप से आत्मा पर ध्यानकेंद्रित मन के साथसर्व भूत हिते रता: – … Read more

५.२४ – योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २३ श्लोक योऽन्त: सुखोऽन्तरारामस् तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।। पद पदार्थ य: – वह व्यक्तिअन्त:सुख: ( एव ) – केवल आत्मानंद का आमोदय: अन्तराराम: ( एव ) – (वह व्यक्ति ) जो केवल वही आनंद का निवास स्थान … Read more

५.२३ – शक्नोतीहैव य: सोढुं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २२ श्लोक शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् |कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: || पद पदार्थ शरीर विमोक्षणात् प्राक् – शरीर को त्यागने से पहलेइह एव – इस वर्तमान समय में ही ( अर्थात साधन अभ्यास करने की इस अवस्था … Read more

५.२२ – ये हि संस्पर्शजा भोगा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २१ श्लोक ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:ख योनय एव ते |आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र !ये संस्पर्शजा भोगा – उन विषयासक्त आनंद जो ज्ञानेन्द्रियों का इन्द्रिय वस्तुओं के संपर्क से होता हैते … Read more

५.२१ – बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २० श्लोक बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् |स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते || पद पदार्थ य: – वह कर्म योगीबाह्य स्पर्शेषु – बाहरी इन्द्रिय सुखोंअसक्तात्मा – से स्वाधीनआत्मनि – आत्मा में ( जो अन्तर्निवासित है )सुखम् – आनंदविन्दति – प्राप्त करता हैस: – वहब्रह्म … Read more