५.१० – ब्रह्मण्याधाय कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ८ और ९ श्लोक ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं  त्यक्त्वा करोति यः।लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥ पद पदार्थ यः- जो एकब्रह्मणि – इन्द्रियों जो महान प्रकृति  का प्रभाव हैंकर्माणि – देखने जैसे कर्म (जो स्वयं करता है )आधाय – (जैसा कि … Read more

५.८ और ५.९ – नैव किञ्चित् करोमीति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ७ श्लोक नैव किञ्चित् करोमीति  युक्तो मन्येत तत्त्ववित्  ।पश्यन् श्रुण्वन् स्पृशन् जिघ्रन् अश्नन्  गच्छन् स्वपन् श्वसन् ॥ प्रलपन् विसृजन् गृह्णन्नुन्मिशन् निमिशन्नपि ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥ पद पदार्थ तत्त्ववित् – जो आत्मा को वास्तव में  जानता हैयुक्त: – कर्मयोगीपश्यन्-आँखों से … Read more

५.७ – योगयुक्तो विशुध्दात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ६ श्लोक योगयुक्तो विशुध्दात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।सर्वभूतात्म भूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥ पद पदार्थ योग युक्त: – कर्म योग का अभ्यासी विशुद्धात्मा – (उसके परिणाम स्वरूप) शुद्ध हृदय से विजितात्मा – (उसके परिणाम स्वरूप) नियंत्रित मन से जितेन्द्रिय: – (उसके परिणाम स्वरूप) सभी इंद्रियों … Read more

५.६ – सन्यासस् तु महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ५ श्लोक सन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥ पद पदार्थ महाबाहो –हे शक्तिशाली भुजाओं वाला !सन्यास: तु  – ज्ञान योगअयोगतः – पहले कर्म योग किए बिनाआप्तुं  दुःखं  – प्राप्त करना कठिन;योग युक्त: – कर्म योग का अभ्यासीमुनि: – आत्मा … Read more

५.५ – यत् साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ४ श्लोक यत्साङ्ख्यैः  प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि  गम्यते ।एकं  साङ्ख्यं  च योगं  च यः पश्यति स पश्यति ॥ पद पदार्थ यत् स्थानं – आत्मबोध का वह परिणामसाङ्ख्यैः – ज्ञान योग के अनुयायियों द्वाराप्राप्यते – प्राप्त होता हैतत्  – वही परिणामयोगै: अपि … Read more

५.४ – सान्ख्ययोगौ पृथग्बालाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ३ श्लोक सान्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥ पद पदार्थ सांख्य योगौ – ज्ञान योग और कर्म योगपृथक – भिन्न (परिणामों में)बाला:- मूर्खन पंडिता:- पूर्ण ज्ञान से रहितप्रवदन्ति – कहते हैं उभयो:- दोनों मेंएकम् अपि – केवल एकसम्यक अस्थिता:- … Read more

५.३ – ज्ञेयः स नित्यसन्यासी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २ श्लोक ज्ञेयः स नित्यसन्यासी  यो न द्वेष्टि  न काङ्क्षति ।      निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाला!य:- जो कर्मयोग करता हैन काङ्क्षति – (कामुक सुखों की) इच्छा नहीं करता है न द्वेष्टि – घृणा … Read more

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 5 (கர்ம ஸந்யாஸ யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 4 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் ஒன்பதாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் ஐந்தாம் அத்யாயத்தின் கருத்தை, “ கர்ம யோகத்தின் எளிதில் செய்யக்கூடிய தன்மை, குறிக்கோளை விரைவாக அடையும் தன்மை, அதன் அங்கங்கள் மற்றும் அனைத்துத் தூய ஆத்மாக்களையும் ஒரே அளவில் பார்க்கும் நிலை ஆகியவை ஐந்தாவது அத்தியாயத்தில் பேசப்படுகின்றன” என்று காட்டுகிறார். முக்கிய ச்லோகங்கள் ச்லோகம் 1 … Read more

५.२ – सन्यासः कर्मयोगश् च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक  १ श्लोक श्री भगवान् उवाचसन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले सन्यास: – ज्ञान योगकर्म योग: च – और कर्म योगउभौ – दोनोंनि: श्रेयसकरौ – स्वतंत्र रूप से आत्म-साक्षात्कार का सर्वोत्तम … Read more

५.१ – सन्यासं कर्मणां कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ४ श्लोक ४२ श्लोक अर्जुन उवाचसन्यासं  कर्मणां कृष्ण  पुनर्योगं  च शंससि ।यच्छ्रेय एतयोरेकं  तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच- अर्जुन ने कहा कृष्ण – हे कृष्ण!कर्मणां संन्यासं  – कर्मयोग को त्यागकर ज्ञानयोग का पालन  करनापुन:- फिर(कर्मणां) योगं  च – कर्म योगशंससि  … Read more