६.३९ – एतन् मे संशयं कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३८ श्लोक एतन्मे संशयं कृष्ण चेत्तुमर्हस्यशेषतः ।त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥ पद पदार्थ कृष्ण – हे कृष्ण!मे – मेरेएतन् संशयम्-यह संदेहअशेषतः – पूरी तरहचेत्तुम् अर्हसि – कृपया निवारण करें;अस्य संशयस्य छेत्ता – जो इस संदेह को दूर कर सकता … Read more

६.३८ – कच्चिन् नोभय विभ्रष्टश्चिन्नाभ्रमिव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३७ श्लोक कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्चिन्नाभ्रमिव नश्यति ।अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाले!ब्राह्मण: पथि विमूढा : – ब्रह्म प्राप्ति के योग (कर्म योग के मार्ग) से कट जानाअप्रतिष्ठा:- निश्चित नहीं (स्वर्ग जैसे लक्ष्यों तक पहुँचना … Read more

६.३७ – अयति: श्रद्धयोपेतो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३६ श्लोक अर्जुन उवाचअयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः ।अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन पूछता हैकृष्ण – हे कृष्ण ! श्रद्धया – निष्ठापूर्वकउपेत: – जिन्होंने योगाभ्यास शुरू कियाअयति: – प्रयासों की कमी (दृढ़ योग अभ्यास में)(उसी के परिणाम स्वरूप)योग संसिद्धिं … Read more

६.३६ – असंयतात्मना योगो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३५ श्लोक असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः ।वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥ पद पदार्थ असंयतात्मना – जो अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकतायोग:- योग (समदृष्टि रखने का)दुष्प्राप:- प्राप्त करना कठिन हैइति – ऐसामे मति: – मेरा निष्कर्ष हैतु … Read more

६.३५ – असंशयं महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३४ श्लोक श्री भगवान् उवाचअसंशयं  महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वालेकौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!चलं मन – अस्थिर मनदुर्निग्रहं – नियंत्रित करना … Read more

६.३४ – चञ्चलम् हि मनः कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३३ श्लोक चञ्चलं  हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् ।तस्याहं  निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥ पद पदार्थ हि – क्योंकिमनः – मनचञ्चलं- (स्वाभाविक रूप से) डगमगाता हुआ,अस्थिर हैबलवद् – बलवान(इसलिए) प्रमाथि – भ्रमित दृढम् – दृढ़ (हमें सांसारिक सुखों की ओर खींचने … Read more

६.३३ – योऽयं योगस् त्वया प्रोक्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३२ श्लोक अर्जुन उवाच योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।एतस्याहं  न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं  स्थिराम् ।। पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहामधुसूदन कृष्ण – हे कृष्ण जो राक्षस मधु का वध कियाय: अयं साम्येन योग: – यह योग जो सर्वत्र … Read more

६.३२ – आत्मौपम्येन सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३१ श्लोक आत्मौपम्येन सर्वत्र  समं  पश्यति योऽर्जुन ।सुखं  वा यदि वा दु:खं  स योगी परमो मतः ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!सर्वत्र –  सभी जगह मेंआत्मौपम्येन – क्योंकि  आत्मा में समानता है (जैसे कि पहले बताया गया है)सर्वत्र – … Read more

६.३१ – सर्वभूतस्थितम् यो माम् 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३० श्लोक सर्वभूतस्थितं  यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥ पद पदार्थ सर्व भूत स्थितं मां – मैं जो सभी आत्माओं में उपस्थित हूँ  (पहले बताए गए योग की स्थिति में समानता को देखते हुए)एकत्वं  आत्स्थितः – … Read more

६.३० – यो माम् पश्यति सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २९ श्लोक यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।तस्याहं  न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ पद पदार्थ य: – जो कोई मां  -मुझेसर्वत्र पश्यति – सभी आत्माओं में (मेरे गुणों को) देखता हैसर्वं  च – सभी आत्माओं कोमयि … Read more