६.२९ – सर्वभूतस्थम् आत्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २८ श्लोक सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ पद पदार्थ योग युक्तात्मा – जिसका मन योग अभ्यास में लगा हैसर्वत्र – सभी आत्माओं में (आत्मा जो विषयों से संबंधित नहीं है)समदर्शन: – समान रूप की स्थिति को देखना (ज्ञान, … Read more

६.२८ – युञ्जन् एवम् सदात्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २७ श्लोक युञ्जन्नेवं  सदात्मानं योगी विगतकल्मष:।सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं  सुखमश्नुते ॥ पद पदार्थ एवं – जैसा कि पहले उल्लेख किया गया हैआत्मानं युञ्जन् – आत्मा में लगे रहनाविगत कल्मष: – (उसके परिणामस्वरूप) सभी पापों से मुक्ति पाकरयोगी – वह जो आत्म-साक्षात्कार का … Read more

६.२७ – प्रशान्तमनसम् ह्येनम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २६ श्लोक प्रशान्तमनसं  ह्येनं  योगिनं  सुखं  उत्तमम् ।उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥ पद पदार्थ प्रशान्त मनसं – मन को स्थिर रखना (जैसा पिछले श्लोक में कहा गया है, आत्मा में)अकल्मषम् – (उसके परिणामस्वरूप) पापों से मुक्त होनाशान्त रजसं – (उसके परिणामस्वरूप) … Read more

६.२६ – यतो यतो निश्चरति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २५ श्लोक यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् ।ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥ पद पदार्थ चञ्चलं  – स्वाभाविक रूप से चंचल अस्थिरम् – दृढ़ता से संलग्न नहीं होना (आत्मा  से संबंधित विषयों)मन: – मनयत: यत: – उन पहलुओं (सांसारिक इच्छाओं) में आसक्ति के … Read more

६.२५ – शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २४ श्लोक शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया ।आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥ पद पदार्थ शनैः शनै:- धीरे-धीरेधृति गृहितया – दृढ़ता से स्थिरबुद्ध्या – बुद्धि द्वाराउपरमेद् – (आत्मा को छोड़कर अन्य सभी मामलों से) हट जाएगा आत्म संस्थं – आत्मा पर … Read more

६.२४ – सङ्कल्पप्रभवान् कामांस्  त्यक्त्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २३ श्लोक सङ्कल्पप्रभवान् कामांस् त्यक्त्वा  सर्वानशेषतः ।मनसैवेन्द्रियग्रामं  विनियम्य समन्ततः ॥ पद पदार्थ सङ्कल्प प्रभवान्  – जो किसी के ममकार (स्वामित्व, स्वयं को स्वतंत्र मानना) के परिणामस्वरूप होता हैसर्वान् कामान् – सभी इच्छुक वस्तुएँअशेषतः (च) मनसा एव त्यक्त्वा – उन्हें पूरी … Read more

६.२३ – तं विद्याद् दु:खसंयोग वियोगम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २२ श्लोक तं विद्याद् दु:खसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् |स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा || पद पदार्थ तं – उस स्थितिदु:ख संयोग वियोगं – दुःख के कोई निशान का विपरीतयोग सञ्ज्ञितं – योग नाम से जाना जाता हैविद्याद् – पहचानोस: योग: – ऐसा योगनिश्चयेन … Read more

६.२२ – यं लब्ध्वा चापरं लाभम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २१ श्लोक यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं तत: |यस्मिन्स्थितो न दु:खेन गुरुणापि विचाल्यते || पद पदार्थ यं लब्ध्वा – ऐसे योग को प्राप्त करअपरं लाभं – और कोई लाभतत: अधिकं – उससे भी बड़ान मन्यते – विचार नहीं करेंगे … Read more

६.२१ – सुखमात्यन्तिकं यत् तत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २० श्लोक सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् |वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वत: || पद पदार्थ अतीन्द्रियं – ज्ञानेन्द्रियों की पकड़ से परेबुद्धि ग्राह्यं – केवल आत्म ज्ञान से समझा जा सकता हैयत् तत् – प्रसिद्धआत्यन्तिकं सुखं – आत्मानुभूति की पवित्र आनंद ( … Read more

६.२० – यत्रोपरमते चित्तम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १९ श्लोक यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया |यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति || पद पदार्थ योग सेवया – योग अभ्यास के कारण ( स्वयं का दर्शन )निरुद्धं – नियंत्रित ( बाहरी पहलुओं पर जाने से)चित्तं – मनयत्र – योग में ( स्वयं … Read more