६.३३ – योऽयं योगस् त्वया प्रोक्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३२ श्लोक अर्जुन उवाच योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।एतस्याहं  न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं  स्थिराम् ।। पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहामधुसूदन कृष्ण – हे कृष्ण जो राक्षस मधु का वध कियाय: अयं साम्येन योग: – यह योग जो सर्वत्र … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ५ (कर्म संन्यास योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ४ गीतार्थ संग्रह के नौवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के पांचवे अध्याय की सार को दयापूर्वक समझाते हैं , ” पांचवे अध्याय में कर्म योग के उपयोगिता , लक्ष्य को शीघ्रता से प्राप्त करने का इसका पहलू , उसके … Read more

६.३२ – आत्मौपम्येन सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३१ श्लोक आत्मौपम्येन सर्वत्र  समं  पश्यति योऽर्जुन ।सुखं  वा यदि वा दु:खं  स योगी परमो मतः ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!सर्वत्र –  सभी जगह मेंआत्मौपम्येन – क्योंकि  आत्मा में समानता है (जैसे कि पहले बताया गया है)सर्वत्र – … Read more

६.३१ – सर्वभूतस्थितम् यो माम् 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३० श्लोक सर्वभूतस्थितं  यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥ पद पदार्थ सर्व भूत स्थितं मां – मैं जो सभी आत्माओं में उपस्थित हूँ  (पहले बताए गए योग की स्थिति में समानता को देखते हुए)एकत्वं  आत्स्थितः – … Read more

६.३० – यो माम् पश्यति सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २९ श्लोक यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।तस्याहं  न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ पद पदार्थ य: – जो कोई मां  -मुझेसर्वत्र पश्यति – सभी आत्माओं में (मेरे गुणों को) देखता हैसर्वं  च – सभी आत्माओं कोमयि … Read more

६.२९ – सर्वभूतस्थम् आत्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २८ श्लोक सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ पद पदार्थ योग युक्तात्मा – जिसका मन योग अभ्यास में लगा हैसर्वत्र – सभी आत्माओं में (आत्मा जो विषयों से संबंधित नहीं है)समदर्शन: – समान रूप की स्थिति को देखना (ज्ञान, … Read more

६.२८ – युञ्जन् एवम् सदात्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २७ श्लोक युञ्जन्नेवं  सदात्मानं योगी विगतकल्मष:।सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं  सुखमश्नुते ॥ पद पदार्थ एवं – जैसा कि पहले उल्लेख किया गया हैआत्मानं युञ्जन् – आत्मा में लगे रहनाविगत कल्मष: – (उसके परिणामस्वरूप) सभी पापों से मुक्ति पाकरयोगी – वह जो आत्म-साक्षात्कार का … Read more

६.२७ – प्रशान्तमनसम् ह्येनम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २६ श्लोक प्रशान्तमनसं  ह्येनं  योगिनं  सुखं  उत्तमम् ।उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥ पद पदार्थ प्रशान्त मनसं – मन को स्थिर रखना (जैसा पिछले श्लोक में कहा गया है, आत्मा में)अकल्मषम् – (उसके परिणामस्वरूप) पापों से मुक्त होनाशान्त रजसं – (उसके परिणामस्वरूप) … Read more

६.२६ – यतो यतो निश्चरति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २५ श्लोक यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् ।ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥ पद पदार्थ चञ्चलं  – स्वाभाविक रूप से चंचल अस्थिरम् – दृढ़ता से संलग्न नहीं होना (आत्मा  से संबंधित विषयों)मन: – मनयत: यत: – उन पहलुओं (सांसारिक इच्छाओं) में आसक्ति के … Read more

६.२५ – शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २४ श्लोक शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया ।आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥ पद पदार्थ शनैः शनै:- धीरे-धीरेधृति गृहितया – दृढ़ता से स्थिरबुद्ध्या – बुद्धि द्वाराउपरमेद् – (आत्मा को छोड़कर अन्य सभी मामलों से) हट जाएगा आत्म संस्थं – आत्मा पर … Read more