गीतार्थ संग्रह – 2

श्री:
श्रीमते शठकोपाये नम:
श्रीमते रामानुजाये नम:
श्रीमदवरवरमुनये नम:

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त्रय षट्खण्डों (छः अध्यायों) का सारांश

श्लोक 2

ज्ञानकर्मात्मिके निष्ठे योगलक्ष्ये सुसंस्कृते |
आत्मानुभूति सिध्यर्थे पूर्व शठकेन चोदिते ||

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शब्दार्थ (पुत्तूर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित)

सुसंस्कृते – शेषत्वज्ञान से सुसज्जित (अपने दासत्व का बोध, सांसारिक तत्वों से वैराग्य आदि)
ज्ञानकर्मात्मिके निष्ठे – ज्ञान योग (प्राचीन ज्ञान का मार्ग) और कर्म योग (शास्त्रों की आज्ञा अनुसरण का मार्ग)
योग लक्ष्ये – योग की प्राप्ति (आत्म साक्षातकार – स्वयं का बोध)
आत्मानुभूति सिध्यर्थे – (और आगे) आत्मानुभव को प्राप्त करना (स्वयं की आनंदपूर्ण अनुभूति)
पूर्व षठकेन – प्रथम षट्खण्डों (छ: आध्यायों) में
चोदिते – विहित

सुगम अनुवाद (पुत्तूर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित)

प्रथम षट्खण्डों (छः अध्यायों) में कर्म योग और ज्ञान योग विहित है, जो जीवात्मा द्वारा अपने दासत्व का ज्ञान और सांसारिक तत्वों से वैराग्य आदि से श्रृंगारित है, जिससे आत्म साक्षात्कार और आत्मानुभव की प्राप्ति होती है|

श्लोक 3

मध्यमे भगवत्तत्व यादात्म्यावाप्ति सिद्धये |
ज्ञानकर्मापी निर्वत्यो भक्तियोग: प्रकिर्तित: ||

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शब्दार्थ (पुत्तूर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित)

मध्यमे – मध्य षट्खण्डों (छः अध्यायों) में
भगवत तत्व यादात्म्य अवाप्ति सिद्धये – श्रेष्ठ सर्वोच्च परमात्मा भगवान की सच्ची अनुभूति की प्राप्ति
ज्ञान कर्म अपी निर्वत्यो – वह जिसका उद्भव कर्म योग से है, जो ज्ञान से समाहित है
भक्तियोग: – भक्ति योग (श्रद्धा भक्ति का मार्ग)
प्रकिर्तित: – समझाया गया है

सुगम अनुवाद (पुत्तूर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित)

मध्यम षट्खण्डों (छः अध्यायों) में, यह समझाया गया है कि किस प्रकार ज्ञान से समाहित कर्म योग के द्वारा भक्ति योग का उदय होता है, जिसके माध्यम से सर्वश्रेष्ठ सर्वोच्च परमात्मा भगवान के विषय में सच्चे अनुभव की प्राप्ति होती है|

श्लोक 4

प्रधान पुरुष व्यक्त सर्वेश्वर विवेचनं |
कर्म धीर भक्तिरित्यादी: पूर्वशेषोन्तिमोदित:  ||

lakshminarasimha-and-prahlada

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शब्दार्थ (पुत्तूर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित)

प्रधान पुरुष व्यक्त सर्वेश्वर विवेचनं – मूल प्रकृति (मौलिक पदार्थ) जो सूक्ष्म है, जीवात्मा (चेतन) और अचेतन (निर्जीव) जो स्थूल है और सर्वेश्वर जो सर्वोच्च और श्रेष्ठ है, उनके विषय में समझाया गया है
कर्म – कर्म योग
धीर – ज्ञान योग
भक्ति – भक्ति योग
इत्यादि: – जिस प्रक्रिया के द्वारा इन सभी की प्राप्ति हुई, आदि
पुर्वशेष: – वह जिन्हें पूर्व अध्यायों में नहीं समझाया गया है

सुगम अनुवाद (पुत्तूर कृष्णमाचार्य स्वामी के तमिल अनुवाद पर आधारित)

सूक्ष्म मूल प्रकृति, जीवात्मा (चेतन) और अचेतन (निर्जीव) जो स्थूल है और सर्वेश्वर जो सर्वोच्च है, प्रक्रिया जिसके द्वारा इन सभी की प्राप्ति हुई, आदि, जिन्हें पूर्व अध्यायों में नहीं समझाया गया था, उन्हें यहाँ अंतिम षट्खण्ड (छः अध्यायों) में समझाया गया है|

– अदियेन भगवती रामानुजदासी

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