१८.४६ – यत: प्रवृत्तिर्भूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४५ श्लोक यत: प्रवृत्तिर्भूतानां  येन सर्वम् इदं ततम् |स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य   सिद्धिं विन्दति मानव: || पद पदार्थ यत: – जिस परमपुरुष सेभूतानां प्रवृत्ति: – हर वस्तु के सृजन आदि जैसे सभी क्रियाएँ उभरते हैंयेन – जिस सर्वोच्च प्रभु द्वाराइदं सर्वम् … Read more

१८.४५ – स्वे स्वे कर्मण्यभिरत:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४४ श्लोक स्वे स्वे कर्मण्यभिरत: संसिद्धिं लभते  नर: |स्वकर्मनिरत: सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु  || पद पदार्थ स्वे स्वे कर्मणि – अपने वर्ण के अनुसार कर्मों मेंअभिरत: – ग्रस्तनर: – व्यक्तिसंसिद्धिं – मोक्ष का फललभते – प्राप्त करता हैस्व कर्म निरत: … Read more

१८.४४ – कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४३ श्लोक कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यं वैश्य कर्म स्वभावजम् |परिचार्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम् || पद पदार्थ कृषि गोरक्ष्य वाणिज्यं – खेती, गायों की रक्षा और व्यापार करनास्वभावजम् – पिछले कर्मों से प्राप्तवैश्य कर्म – वैश्यों के लिए गतिविधियाँशूद्रस्य अपि – चौथे वर्ण से … Read more

१८.४३ – शौर्यं तेजो धृति: दाक्ष्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४२ श्लोक शौर्यं तेजो धृति: दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् |दानम्  ईश्वरभावश्च  क्षात्रं  कर्म स्वभावजम् || पद पदार्थ शौर्यं – वीरता जो किसी को युद्धभूमि में निडरता से प्रवेश कराती हैतेज:- अपराजेय होनाधृति: – बाधा उत्पन्न होने पर भी दृढता से स्थित … Read more

१८.४२ – शमो दम: तप: शौचं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४१ श्लोक शमो दमस्तप : शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च  ​​|ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् || पद पदार्थ शम:- बाह्य इन्द्रियों पर नियंत्रणदम:- मन को नियंत्रित करनातप:-शास्त्र में बताए अनुसार शरीर से तपस्या करनाशौचं – शास्त्र में निर्धारित गतिविधियों में संलग्न होने की … Read more

१८.४१ – ब्राह्मणक्षत्रियविशाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४० श्लोक ब्राह्मणक्षत्रियविशां  शूद्राणां  च परन्तप |कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः || पद पदार्थ परन्तप – हे शत्रुओं को सताने वाला!ब्राह्मण क्षत्रिय विशां – ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों केशूद्राणां च – और शूद्रों केस्वभावप्रभवै: गुणै: – उनमें से प्रत्येक के लिए गुण … Read more

१८.४० – न तत् अस्ति पृथिव्यां वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ३९ श्लोक न तदस्ति पृथिव्यां  वा दिवि देवेषु वा पुन: |सत्त्वं  प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिस्स्यात् त्रिभिर्गुणै: || पद पदार्थ पृथिव्यां वा – इस पृथ्वी पर मनुष्यों दिवि देवेषु वा पुन: – स्वर्ग में देवताओं एभि: त्रिभि: प्रकृतिजै: गुणै: मुक्तं – इन  तीन भौतिकवादी  गुणों … Read more

१८.३९ – यदग्रे चानुबन्धे च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ३८ श्लोक यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ यत् – जो सुखअग्रे च – प्रारम्भ मेंअनुबन्धे च – तथा पश्चात्आत्मन: – आत्मा कोमोहनं – मोहग्रस्त करता हैनिद्रा आलस्य प्रमादोत्थं – जो निद्रा, आलस्य तथा प्रमाद के कारण होता … Read more

१८.३८ – विषयेन्द्रियसंयोगाद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ३७ श्लोक विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम्।परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम्।। पद पदार्थ विषयेन्द्रिय संयोगात् – इंद्रियों के वस्तुओं (जैसे भोजन, पेय पदार्थ आदि) के संपर्क में आने सेअग्रे – आरंभिक अवस्था में (उन वस्तुओं के भोग की)यत् तत् अमृतोपमम् – जो सुख अमृत … Read more

१८.३७ – यत् तदग्रे विषम् इव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ३६ श्लोक यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्।तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम्।। पद पदार्थ यत् तत् – जो सुखअग्रे – (योग के) आरम्भ मेंविषमिव – दुःखमय (आत्मा सम्बन्धी अभ्यास के अभाव के कारण, तथा उसके कारण कष्ट भोगने के कारण) प्रतीत होता हैपरिणामे – (योग … Read more