श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नमः

श्री भगवद्गीता महाभारत का सबसे अनिवार्य अंग है | जब अधार्मिक एवं बुरी ताकतों के कारण धरती माँ का भोज बढ़ता गया तो श्रीमन नारायण, द्वापर युग के अंतिम समय में श्री कृष्ण का अवतार लिए | श्री कृष्ण परमात्मा ने खुद कहा है , अवतार लेने के तीन मुख्य उद्देश्य हैं – साधु संत की रक्षा , अधार्मिक ताकतों की नाश और धर्म संस्थापन | सारे उपनिषद के तत्त्व श्री भगवद गीता में भरपूर निहित है , इसलिए इसको गीतोपनिषद बुलाया जाता है |

नीचे दिया गया श्लोक श्री भगवद्गीता की महत्व को बताता है :

सर्वोपनिषदो गाव: दोग्धा गोपाल नन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ॥

इस श्लोक का अर्थ है – “सारे उपनिषद गाय हैं | इन गायों को दुहने वाले हैं यादव कुल के तिलक श्री कृष्ण | | अर्जुन बछड़ा है | ज्ञानी वे हैं जो इस श्रेष्ट (मीठा) दूध को पीते हैं | अमृत समान मीठी गीता ही दूध है |”

आळ्वारों ने श्री कृष्ण परमात्मा के दिव्य कमल मुख से निकली गीता की बड़ी प्रशंसा की है | उन्होंने इस विषय पर बहुत ज़ोर दिया है कि मनुष्य होने के नाते इस जीवन काल में हम सब गीता पढ़ने और ठीक ढंग से समझने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए | इसी में हम सब की उत्थान एवं भलाई है | श्री वैष्णव संप्रदाय में गीता की बड़ी महत्वपूर्णता है , विशेष रूप से चरम श्लोक बहुत ही महवत्पूर्ण माना जाता है [ १८ .६६ ] “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।। ” ( सभी प्रकार के उपायों को त्यागकर केवल मेरी ही शरण ग्रहण करो। मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा। इसलिए शोक मत करो। )” यह चरम श्लोक , रहस्य मन्त्रों में शामिल है और इसके पूर्ण अर्थ को श्री वैष्णव संप्रदाय की दीक्षा लेने के समय ( पञ्च संस्कार ) सिखाई जाती है | यह भी इस श्री वैष्णव संप्रदाय का एक मुख्य सिध्दांत है |

नम्माळ्वार तिरुवाय्मोळि ( ४.८.५) में कहते हैं, “अरिविनाल कुरैविल्ला अगल्ज्ञालत्तवर अरिय नेरी येल्लाम एडुत्तुरैत्त निरै ज्ञानत्तोरु मूर्ती ” ( इसका अर्थ यह है कि जो भी इस संसार में ऐसा जीवन जीता है जिससे उसको इस विषय का ज्ञान भी नहीं है कि वो अज्ञानी है , उन जैसे लोगों के लिए परमात्मा श्री कृष्ण ने बहुत ही सरल तरीके से वेदार्थ को इस गीता में समझाया है )
तिरुमळिसै आळ्वार नान्मुगन तिरुवन्दादि (७१) में कहते हैं, ” सेयन अणियन सिरियन मिगप्पेरियन आयन तुवरैक्कोनाय निन्ड्र मायन अंड्रोदिय वाक्कतनै कल्लार उलगत्तिल ऐतिरलाय मेयज्ञानम् इल ” ( एम्बेरुमान श्री कृष्ण जो परत्व और सौलभ्य दोनों गुणों के आधार हैं – यादव कुल में पैदा होकर गायो को चराकर सौलभ्यता , और द्वारकादीश होने के नाते अपने परत्वता का भी प्रदर्शन किया | महाभारत के युद्द में अर्जुन को गीतोपदेश दिया ख़ासकर चरम श्लोक में केंद्रित )
आळ्वार कहते हैं कि जो मनुष्य इस गीतोपनिषद को सीखने का प्रयत्न भी न करे , उसे विद्याहीन तथा भगवान का द्रोही माना जाएगा |

हमारे पूर्वाचार्यों ने भी गीता की अभ्यास करने पर ज़ोर दी है | श्री रामानुजाचार्य ने गीता की टिप्पणी देकर हमारे ऊपर अत्यधिक कृपा की है | स्वामी वेदांताचार्य ने श्री रामानुजाचार्य के गीता भाष्य पर अपने खुद की टिप्पणी दी थी – तात्पर्य चन्द्रिका | यह सारे टिप्पणी कई धर्मग्रंथों से उचित निर्देशों को लेकर , गीता के सही अर्थों को निःसंदेह समझने में मदद करते हैं |

श्री वैकुण्ठ वासी आल्कोंडविल्ली गोविंदाचार्य स्वामी ने श्री रामानुजाचार्य के गीताभाष्य का अनुवाद, अंग्रेज़ी में, बहुत ही भावपूर्ण तरीके से लिखा था | श्री वेङ्कटेश स्वामी ने , आज के पाठकों को आसानी से समझने के लिए, और भी सरल शब्दों का प्रयोग कर , इस अनुवाद को दुबारा प्रकाशित किया |

वैकुण्ठ वासी, पुथ्थूर श्री उ. वे. कृष्णास्वामी ऐयंगार ने गीताभाष्य तथा तात्पर्य चन्द्रिका पर आधारित , श्री भगवद्गीता पर तमिल भाषा में बहुत ही सुन्दर टीका लिखा था | उन्होंने हर एक श्लोक का अर्थ सरल तमिल में लिखा था | उनके ही सरल अनुवाद के सहायता से , श्री उ. वे. सारथी तोताद्रि स्वामी ने, अंग्रेज़ी में गीता के श्लोकों का अर्थ संकलित करके लिखा था | उस अंग्रेज़ी अनुवाद के आधारित, अब हिंदी में श्री भगवद्गीता का अनुवाद प्रारंभ हो रहा है | हम इन सारे महा विद्वानों के आभारी हैं और बड़ी विनम्रता से हमारी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

अध्याय १

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/preface/

संगृहीत- http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org