श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति |
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: ||
पद पदार्थ
य: – वह जो
पत्रं – पत्ता
पुष्पं – फूल
फलं – फल
तोयं – पानी
मे – मुझे
भक्त्या – प्रेम से
प्रयच्छति – समर्पण करता है
प्रयतात्मन: – उस पवित्र हृदय वाले व्यक्ति
भक्ति उपहृतं तत – प्रेमपूर्वक समर्पित की गई ऐसी सामग्री
अहम् – मैं
अश्नामि – स्वीकार करता / खाता / आनंद लेता हूँ
सरल अनुवाद
वह जो प्रेम से मुझे एक पत्ता, फूल, फल या पानी समर्पण करता है , मैं ऐसी सामग्री को स्वीकार करता /खाता / आनंद लेता हूँ जो उस पवित्र हृदय वाले व्यक्ति द्वारा प्रेमपूर्वक समर्पित की गई हो |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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