१३.२६ – यावत् सञ्जायते किञ्चित्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २५ श्लोक यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ।। पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरतवंशी!किञ्चित् स्थावर जङ्गमम् – स्थावर (जैसे कि पौधा) या जंगम (जैसे कि पशु) रूप मेंयावत् सत्त्वं सञ्जायते – जितने भी प्राणी जन्म लेते हैंतत् – वे सभी प्राणीक्षेत्र क्षेत्रज्ञ … Read more

१३.२५ – अन्ये त्वेवम् अजानन्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २४ श्लोक अन्ये त्वेवम् अजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।। पद पदार्थ एवम् अजानन्तः – जो आत्मा को देखने के लिए पहले बताए गए तरीकों को नहीं जानते हैंअन्ये तु – कुछ अन्य लोगअन्येभ्य: – ज्ञानियों (बुद्धिमानों) सेश्रुत्वा – कर्म … Read more

१३.२४ – ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २३ श्लोक ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना।अन्ये साङ्ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे।। पद पदार्थ केचित् – कुछ लोग (जो योग में विशेषज्ञ हैं)आत्मनि – शरीर में स्थितआत्मानां – आत्मा कोआत्मना – अपने मन सेध्यानेन – [ध्यान] योग के माध्यम सेपश्यन्ति – देख रहे … Read more

१३.२३ – य एनं वेत्ति पुरुषं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २२ श्लोक य एनं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह।सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते।। पद पदार्थ एनं पुरुषं – इस जीवात्मा जिसे पहले समझाया गया थाप्रकृतिं च – तथा प्रकृतिगुणैः सह – सत्व, रजस ,तमस आदि गुणों वालीय वेत्ति – … Read more

१३.२२ – उपद्रष्टाऽनुमन्ता च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २१ श्लोक उपद्रष्टाऽनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः।परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन् पुरुषः परः।। पद पदार्थ अस्मिन् देहे – इस शरीर में (वर्तमान) हैपरः पुरुषः – यह आत्मा (जिसमें अनंत ज्ञान और शक्ति है)उपद्रष्टा – (शरीर को देखकर) कार्य करने वालीअनुमन्ता – (शरीर … Read more

१३.२१ – कारणं गुणसङ्गोऽस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २०.५ श्लोक कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु।। पद पदार्थ अस्य – इस पुरुष (आत्मा) के लिए सत् असत् योनि जन्मसु – उच्च योनियों (जैसे देव) और निम्न योनियों (जैसे पशु, पौधे) में जन्म लेने काकारणं – कारणगुण सङ्ग: – सुख और दुःख … Read more

१३.२०.५ – पुरुषः प्रकृतिस्थो हि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २० श्लोक पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान् गुणान् । पद पदार्थ प्रकृतिस्थ: – पदार्थ से संबद्ध होने के कारणपुरुषः – जीवात्माप्रकृतिजान् – ऐसे संबंध के कारण उत्पन्नगुणान् – गुणों (सत्व, रजस् और तमस्) के माध्यम से उत्पन्न होने वाले सुख/दुःखभुङ्क्ते … Read more

१३.२० – कार्यकारणकर्तृत्वे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १९ श्लोक कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।। पद पदार्थ कार्य कारण कर्तृत्वे – शरीर और ग्यारह इंद्रियों द्वारा किए जाने वाले कार्योंप्रकृति: – प्रकृति (जो जीवात्मा द्वारा व्याप्त है)हेतुः – कारण के रूप मेंउच्यते – समझाया गया हैपुरुषः – … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय १२ (भक्ति योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ११ गीता संग्रह के सोलहवें श्लोक में आळवन्दार स्वामीजी बारहवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “बारहवें अध्याय में, आत्म उपासना (स्वयं की आत्मा की खोज में संलग्न) की तुलना में भगवान के प्रति भक्ति योग की महानता, ऐसी … Read more

१३.१९ – प्रकृतिं पुरुषं चैव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १८ श्लोक प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि।विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान्।। पद पदार्थ प्रकृतिं च – मूल प्रकृतिपुरुषं अपि उभौ एव – और जीवात्मा दोनोंअनादि विद्धि – जानो कि दोनों अनादि काल से एक साथ हैंविकारान् च – परिवर्तन (जैसे कि … Read more