४.२१ – निराशीर्यतचित्तात्मा
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २० श्लोक निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रह: |शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् || पद पदार्थ निराशी: – कर्मफल के आसक्ति से मुक्तयतचित्तात्मा – मन को संयम रखते हुए ( लौकिक विषयों के प्रति )त्यक्त सर्व परिग्रह: – सामान्य वस्तुओं के स्वामित्व से मुक्त … Read more