श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय |
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ||
पद पदार्थ
धनञ्जय – हे अर्जुन!
तानि कर्माणि – वे गतिविधियाँ ( जैसे सृजन आदि)
उदासीनावत् आसीनम् – उदासीन रहना
तेषु कर्मसु असक्तम् -ऐसे सृष्टि आदि कर्मों से होनेवाली असमानता से असंलग्न होना
मां न च निबध्नन्ति – मुझे नही बाँधतें ,(मुझमें वैश्यम्य (असमान होना), नैर्घृण्य (निर्दयी होना) जैसे दोष उत्पन्न करके )
सरल अनुवाद
हे अर्जुन! क्यों कि मैं उन गतिविधियों (जैसे सृजन आदि) के प्रति उदासीन हूँ और ऐसे सृष्टि आदि कर्मों से होने वाली असमानता से असंलग्न हूँ, वे मुझे नही बाँधतें (मुझमें वैशम्य (असमान होना), नैर्घृण्य (निर्दयी होना) जैसे दोष पैदा करके)।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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