११.१६ – अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक १५ श्लोक अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् |नान्तं  न मध्यं  न पुनस्तवादिं  पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप || पद पदार्थ अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं – अनगिनत हाथों,पेटों ,मुखों,आंखोंअनन्त रूपम् – अनगिनत आकृति से युक्तत्वां – तुमसर्वथा – सभी ओर सेपश्यामि – मैं देख रहा हूँ।विश्वेश्वर – … Read more

११.१५ – पश्यामि देवांस्तव देव देहे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक १४ श्लोक अर्जुन उवाच पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा  भूतविशेषसङ्घान्  |ब्रह्माणमीशं  कमलासनस्थं ऋषींश्च  सर्वान् उरगांश्च  दीप्तान् (दिव्यान्)  || पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहादेव – हे प्रभु!तव देवे – तुम्हारे स्वरूप मेंसर्वान् देवान् पश्यामि – मैं सभी देवताओं … Read more

११.१४ – तत: स विस्मयाविष्टो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक १३ श्लोक तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा  धनञ्जय: |प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत  || पद पदार्थ तत :- तत्पश्चात्स: धनञ्जय: – वह अर्जुनविस्मयाविष्ठ: – विस्मय से भर जाना (जैसा कि पिछले श्लोकों में बताया गया कृष्ण के दिव्य रूप में सब कुछ … Read more

११.१३ – तत्रैकस्थं जगत् कृत्स्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक १२ श्लोक तत्रैकस्थं जगत् कृत्स्नं  प्रविभक्तमनेकधा |अपश्यद्देव  देवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा   || पद पदार्थ तत्र देव देवस्य शरीरे – ऐसे देवदेव के दिव्य रूप मेंअनेकधा प्रविभक्तम् – अनेक प्रकार से विभाजितकृत्स्नं जगत् – सभी संसारोंएकस्थं – एक ही स्थान मेंपाण्डव-अर्जुनतदा … Read more

११.१२ – दिवि सूर्यसहस्रस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ११ श्लोक दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता |यदि भास्सदृशी सा स्याद् भासस्तस्य महात्मन: || पद पदार्थ सूर्य सहस्रस्य भा: – हजारों सूर्यों की चमकदिवि – आकाश मेंयुगपत – एक ही समय मेंयदि उत्थिता भवेत् – यदि प्रकट हुआसा – वह चमकतस्य महात्मन: … Read more

११.११ – दिव्य माल्याम्बरधरम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक १० श्लोक दिव्य माल्याम्बरधरं दिव्य गंधानुलेपनम् |सर्वाश्चर्यमयं देवम् अनन्तं विश्वतोमुखम् || पद पदार्थ दिव्य माल्य अंबरधरम् – दिव्य मालाओं और वस्त्रों से सुशोभित गयादिव्य गंध अनुलेपनम् – दिव्य चंदन लेप आदि से अभिषेक कियेसर्व आश्चर्यमयम् – सभी अद्भुत सत्ताओं/पहलुओं का … Read more

११.१० – अनेक वक्त्र नयनम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ९ श्लोक अनेक वक्त्र नयनम् अनेकाद्भुत दर्शनम् |अनेक दिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्  || पद पदार्थ अनेक वक्त्र नयनम् – अनगिनत मुखोंऔर आँखों वालेअनेक अद्भुत दर्शनम् – असीमित महिमाओं के अद्भुत दृश्यअनेक दिव्य आभूषणम् – अनेक दिव्य आभूषणों से युक्तदिव्य अनेक उद्यत आयुधम् … Read more

११.९ – एवं उक्त्वा ततो राजन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ८ श्लोक संजय उवाच एवमुक्त्वा ततो राजन् महायोगेश्वरो हरि: |दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् || पद पदार्थ संजय उवाच – संजय ने कहाराजन् – हे राजा धृतराष्ट्र!महा योगेश्वर: हरि: – कृष्ण भगवान, जो अद्भुत पहलुओं के साथ हैंएवम् उक्त्वा – ऐसा … Read more

११.८ – न तु माम् शक्ष्यसे द्रष्टुम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ७ श्लोक न तु मां शक्ष्यसे द्रष्टुं अनेनैव स्वचक्षुषा |दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम् || पद पदार्थ अनेन एव स्व चक्षुषा – तुम्हारी इन आँखों सेमां द्रष्टुं तु न शक्ष्यसे – तुम मुझे नहीं देख सकतेदिव्यं चक्षु:- दिव्य … Read more

११.७ – इहैकस्थं जगत् कृत्स्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ११ << अध्याय ११ श्लोक ६ श्लोक इहैकस्थं जगत् कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् |मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि || पद पदार्थ गुडाकेश – हे नींद को जीतने वाले!इह मम देहे – यहाँ मेरे इस स्वरुप मेंएकस्थम् – एक भाग मेंस चराचरं कृत्स्नं जगत् – भौतिक क्षेत्र … Read more