११.३२ – कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वा न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।

पद पदार्थ

श्री भगवानुवाच – श्री भगवान कहते हैं
लोकक्षयकृत – इस संसार की (राक्षसी) भूमि का नाश करने के लिए
प्रवृद्ध – मैं जो इस भयानक रूप में प्रकट हुआ हूँ
काल: अस्मि – मैं साक्षात् मृत्यु हूँ (जो इन योद्धाओं की आयु की गणना करता है)
लोकान् – इस राजभूमि [के योद्धाओं को]
समाहर्तुम् – व्यक्तिगत रूप से
इह – इस युद्ध क्षेत्र में
प्रवृत्तः – तैयार हूँ
प्रत्यनीकेषु – (तुम्हारे) विपरीत पक्ष में
ये योधाः अवस्थिताः – वे सभी योद्धा जो (लड़ने के लिए) प्रतीक्षा कर रहे हैं
सर्वे – वे सभी
त्वा ऋते अपि – तुम वहाँ नहीं हो तो भी
न भविष्यन्ति – (मेरी इच्छा से) नष्ट हो जाएँगे

सरल अनुवाद

श्री भगवान कहते हैं – मैं साक्षात् मृत्यु हूँ (जो इन योद्धाओं की आयु की गणना करता है) जो इस भयानक रूप में इस संसार की (राक्षसी) भूमि का नाश करने के लिए प्रकट हुआ हूँ। मैं व्यक्तिगत रूप से इस युद्ध क्षेत्र में इस राजभूमि [के योद्धाओं को] नष्ट करने के लिए तैयार हूँ। यदि तुम वहाँ नहीं हो, तो भी वे सभी योद्धा जो (तुम्हारे) विपरीत पक्ष में लड़ने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं, (मेरी इच्छा से) नष्ट हो जाएँगे।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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