४.१ – इमं विवस्वते योगं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

श्री भगवान उवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ।।

पद पदार्थ

श्री भगवान उवाच – भगवान श्री कृष्णा ने कहा
अहम् – मैं
अव्ययं – अविनाशी
इमं योगं – इस कर्म योग , जिसे मैंने पिछले अध्याय में सिखाया था
विवस्वते – सूर्य को ( सूरज का अध्यक्ष देवता )
प्रोक्तवान् – सिखाया था ( वैवस्वत मन्वन्तर के आरंभ मे )
विवस्वान् – सूर्य
मनवे – मनु को ( वैवस्वत मन्वन्तर के मनु )
प्राह – सिखाया था
मनु: – मनु
इक्ष्वाकवे – उसके पुत्र इक्ष्वाकु को
अब्रवीत – सिखाया था

सरल अनुवाद

भगवान श्री कृष्णा ने कहा , मैं इस कर्म योग को सूर्य को सिखाया था। सूर्य ने मनु को सिखाया था । मनु उसके पुत्र इक्ष्वाकु को सिखाया था ।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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