श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
देहिनोऽस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥
पद पदार्थ
अस्मिन् देहे – (जो जीवित है ) इस शरीर में
देहिना: – आत्मा के लिए ( चित )
कौमारं – बचपन
यौवनं – जवानी
जरा – बुढ़ापा
यथा (भवंती) – जिस प्रकार होता है
तथा – उसी प्रकार
देहान्तर प्राप्ति: – (शरीर त्यागने के बाद ) दूसरा शरीर प्राप्त करता है
धीर: – ज्ञानी
तत्र – आत्मा की इस देहान्तरण
न मुह्यति – से चकित नहीं होता
सरल अनुवाद
जिस प्रकार इस शरीर में जीवित आत्मा बचपन , जवानी तथा बुढ़ापे का अनुभव करता है उसी प्रकार वो आत्मा (शरीर त्यागने के बाद) दूसरा शरीर प्राप्त करता है | ज्ञानी, आत्मा की इस देहान्तरण से चकित नहीं होता |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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