२.५३ – श्रुतिविप्रतिपन्ना ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

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श्लोक

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥

पद पदार्थ

श्रुति विप्रतिपन्ना – मुझसे सुनने से विशेष रूप से जानना
अचला – स्थिर 
ते  – तुम्हारा
बुद्धिः- बुद्धि
समाधौ – मन में
यदा  – जब
निश्चला स्थास्यति – बहुत दृढ़ हो जाता है
तदा  – उस समय
योगम् – आत्म साक्षात्कार 
अवाप्स्यसि – प्राप्त  करोगे 

सरल अनुवाद

मुझसे सुनने से प्राप्त विशेष ज्ञान से तुम्हारी स्थिर बुद्धि, जब दृढ़ हो जाएगी, तब तुम आत्म साक्षात्कार प्राप्त करोगे ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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