१४.२३ – उदासीनवदासीनो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २० श्लोक उदासीनवदासीनो  गुणैर्यो न विचाल्यते  |गुणा  वर्तन्त  इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते  || पद पदार्थ य:- जो कोई भीउदासीनवत् आसीन: – उदासीन रहता (आत्मा के अलावा अन्य विषयों पर जैसे कि पहले बताया गया है)गुणै: – तीन गुणों सेन विचाल्यते – … Read more

१४.२२ – प्रकाशं च प्रवृत्तिं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २० श्लोक श्री भगवान् उवाच प्रकाशं  च प्रवृत्तिं  च मोहमेव च पाण्डव  |न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति  || पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले पाण्डव – हे पाण्डुपुत्र! (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में )प्रकाशं च … Read more

१४.२१ – कैर् लिंगै: त्रिगुणान् एतान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २० श्लोक अर्जुन उवाच कैर् लिंगैस्त्रिगुणान्  एतान् अतीतो भवति प्रभो |किमाचार: कथं  चैतांस्त्रीन्  गुणान् अतिवर्तते || पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा प्रभो! – मेरे नाथ!एतान् त्रिगुणान् अतीत: – जो इन तीन गुणों से परे हैकै: लिंगै: भवति … Read more

१४.२० – गुणान् एतान् अतीत्य त्रीन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १९ श्लोक गुणान् एतान् अतीत्य त्रीन् देही देहसमुद्भवान्   |जन्ममृत्युजरादु:खै: विमुक्तोऽमृतम् अश्नुते  || पद पदार्थ देही – यह आत्मा जो शरीर के साथ हैदेह समुद्भवान् – शरीर जो प्रकृति (पदार्थ) का रूपांतर हैएतान् – येत्रीन् – तीन गुणअतीत्य – पार … Read more

१४.१९ – नान्यं गुणेभ्य: कर्तारम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १८ श्लोक नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टाऽनुपश्यति |गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति || पद पदार्थ द्रष्टा – वह जो सत्वगुण में स्थापित है और जिसे आत्म-साक्षात्कार हैगुणेभ्य: अन्यम् – अपनी आत्मा जो सत्व आदि गुणों से भिन्न हैकर्तारं न अनुपश्यति … Read more

१४.१८ – ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १७ श्लोक ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था: मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: |जघन्यगुणवृत्तिस्था: अधो गच्छन्ति तामसा: || पद पदार्थ सत्त्वस्था: – जिनके पास सत्वगुण की प्रचुरता हैउर्ध्वं गच्छन्ति – (अंततः) मोक्ष (मुक्ति) की उच्च स्थिति तक पहुँचते ;राजसा: – जिनके पास रजोगुण की प्रचुरता … Read more

१४.१७ – सत्त्वात् संजायते ज्ञानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १६ श्लोक सत्त्वात् संजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ​​|प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ​​|| पद पदार्थ सत्त्वात् – केवल (प्रचुर मात्रा में) सत्वगुण द्वाराज्ञानं – ज्ञान (आत्म-साक्षात्कार सहित)संजायते – अच्छी तरह से निर्मित होता हैरजस: – केवल (प्रचुर मात्रा में) … Read more

१४.१६ – कर्मण: सुकृतस्याहु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १५ श्लोक कर्मण: सुकृतस्याहु: सात्त्विकं निर्मलं फलम् |रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमस: फलम् || पद पदार्थ सुकृतस्य कर्मण:- जो कर्म, फल की आसक्ति के बिना (ज्ञानी कुल में जन्म लेने वाले व्यक्ति द्वारा) किए जाते हैंसात्त्विकं फलम् – सत्व गुण का … Read more

१४.१५ – रजसि प्रलयं गत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १४ श्लोक रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते |तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते || पद पदार्थ रजसी (प्रवृद्धे) – जब रजोगुण बढ़ रहा होप्रलयं गत्वा – यदि आत्मा अपना शरीर त्याग देती हैकर्म संगीशु – उन लोगों के कुल में जो सांसारिक … Read more

१४.१४ – यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १३ श्लोक यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्  |तदोत्तमविदां  लोकान् अमलान्  प्रतिपद्यते || पद पदार्थ देहभृत् – शरीर में निवास करती आत्मायदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु – जब सत्वगुण बढ़ रहा होप्रलयं याति (चेत्) – यदि वह अपना शरीर त्याग … Read more