श्री: श्रीमते शठकोपाये नम: श्रीमते रामानुजाये नम: श्रीमदवरवरमुनये नम:
श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी – श्री रामानुज स्वामीजी
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यत्पदां भोरूहध्यान विधवस्ताशेष कल्मष:|
वस्तुतां उपयातोऽहम् यामुनेयम् नमामितम् ||
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मैं, श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी की आराधना करता हूँ, जिनकी कृपा से मेरे सभी दोषों का नाश हुआ और मैं एक पहचान योग्य वस्तु हुआ अर्थात पहले मैं अचित वस्तु के समान था और अब श्री यामुनाचार्य स्वामीजी के चरण कमलों में ध्यान करने से मुझे ज्ञान हुआ कि मैं चित/सत वस्तु (आत्मा) हूँ।
— श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी की महिमा में श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा रचित वंदन पद
आलवंदार (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी), श्रीमन् नाथमुनी स्वामीजी के पौत्र , वेद वेदान्त आदि के सुप्रसिद्ध विद्वान् थे। उन्होंने अपने विभिन्न ग्रंथों के माध्यम से संप्रदाय के मूल सिद्धांतो की विवरणात्मक व्याख्या की और हमारे श्रीवैष्णव सत-संप्रदाय की नींव की स्थापना की। उन्हीं में से एक दिव्य ग्रंथ है, गीतार्थ संग्रह।
गीतार्थ संग्रह, संस्कृत स्तोत्र प्रबंध है, जो 32 श्लोकों के माध्यम से भगवत गीता के सार को प्रदर्शित करता है। इन 32 श्लोको को निम्न प्रसंगों में वर्गीकृत किया गया है:
- गीता शास्त्र का उद्देश्य – श्लोक 1
- प्रत्येक षट्खंडो (छः अध्यायों) का सार – श्लोक 2 – 4
- प्रत्येक अध्याय का सार – श्लोक 5 – 22
- कर्म, ज्ञान , भक्ति योगों की व्याख्या- श्लोक 23 – 28
- ज्ञानी की महानता – श्लोक 29 – 31
- सारांश – श्लोक 32
पुत्तूर “सुदर्शन” श्री यु. वे. कृष्णमाचार्य स्वामी ने इन श्लोकों का सुगम अर्थ, तमिल भाषा में प्रदान किया है। उसी के आधार पर किये गए अंग्रेजी अनुवाद की सहायता से, अब हम इस प्रबंध के प्रत्येक भाग का हिंदी अनुवाद देखते है।
— अदियेन भगवती रामानुजदासी
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