श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।।
पद पदार्थ
महाबाहो – हे महाबाहु अर्जुन!
सत्त्वं रज: तम: इति गुणाः – सत्व (अच्छाई), रजस (इच्छाएं) और तमस (अज्ञान) नाम के ये तीन गुण
प्रकृति संभवाः – हमेशा पदार्थ के साथ जुड़े रहते हैं
अव्ययम् – जिसे (स्वाभाविक रूप से) गुणों के साथ रहने की हीनता नहीं है
देहिनं – जीवात्मा जो शरीर में निवास कर रहा है
देहे – उसके शरीर में
निबध्नन्ति – उसको बांध रहे हैं
सरल अनुवाद
हे महाबाहु अर्जुन! सत्व (अच्छाई), रजस (इच्छाएं) और तमस (अज्ञान) नाम के ये तीन गुण, जो हमेशा पदार्थ के साथ जुड़े रहते हैं, जीवात्मा को उसके शरीर में बांध रहे हैं, जिसे (स्वाभाविक रूप से) गुणों के साथ रहने की हीनता नहीं है और वह शरीर में निवास कर रहा है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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