१४.४ – सर्वयोनिषु कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता।।

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!
सर्व योनिषु – सभी जन्मों जैसे देव , मनुष्य, तिर्यक (पशु) और स्थावर (पौधे) में
याः मूर्तयः – उन विभिन्न रूपों/शरीरों
सम्भवन्ति – प्रकट हो रहे हैं
तासां – उन शरीरों का
महत् ब्रह्म – मूल पदार्थ (जो चेतनाओं (आत्माओं) के साथ प्रभावी अवस्था में है)
योनि: – कारण है
अहम् – मैं
बीजप्रदः – चेतनाओं (आत्माओं) को पदार्थ के साथ (उनके व्यक्तिगत कर्म के आधार पर) जोड़ता हूँ
पिता – पिता हूँ

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! मूल पदार्थ (जो चेतनाओं (आत्माओं) के साथ प्रभावी अवस्था में है) सभी जन्मों जैसे देव , मनुष्य, तिर्यक (पशु) और स्थावर (पौधे) में उन विभिन्न रूपों/शरीरों का कारण है जो प्रकट हो रहे हैं। मैं वह पिता हूँ जो चेतनाओं (आत्माओं) को पदार्थ के साथ (उनके व्यक्तिगत कर्म के आधार पर) जोड़ता हूँ [विविध रूपों का निर्माण करने के लिए]।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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