श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
य इदं परमं गुह्यं मद्भक्तेश्वभिधास्याति |
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय: ||
पद पदार्थ
य :- जो
परमं गुह्यं इदं – यह शास्त्र जो अत्यंत गोपनीय है
मद्भक्तेषु – मेरे भक्तों को
अभिधास्याति – समझाता है (वह)
मयि – मेरी ओर
परां भक्तिं कृत्वा – परम भक्ति में लीन होगा
माम् एवैष्यति – मुझे ही प्राप्त करेगा
असंशय: – यह निसंदेह है
सरल अनुवाद
जो मनुष्य इस अत्यन्त गोपनीय शास्त्र को मेरे भक्तों को समझाता है, वह मुझमें परम भक्ति में लीन होंगे और मुझे ही प्राप्त करेगा ; यह निसंदेह है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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