श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानावमानयोः ॥
पद पदार्थ
शीतोष्ण सुख दुःखेषु – ठंड-गर्मी ; सुख-दुःख में
तथा – उसी तरह
मान अवमानयोः – और सम्मान अपमान में
जितात्मनः – अप्रभावित मन के साथ
प्रशान्तस्य – (उसके मन में ) जिसका ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण हो
आत्मा परं – केवल जीवात्मा
समाहितः – अच्छी तरह से स्थापित है
सरल अनुवाद
केवल वही जीवात्मा अच्छी तरह से स्थापित है जिसको ठंड-गर्मी ,सुख-दुःख और सम्मान-अपमान में अप्रभावित मन हो ; उसके मन में जिसको ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण हो |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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