७.२९ – जरामरणमोक्षाय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

<< अध्याय ७ श्लोक २८

श्लोक

जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।
ते ब्रह्य तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं
कर्म चाखिलम् ॥

पद पदार्थ

जरा मरण मोक्षाय – आत्मानुभव रूप मोक्ष (आत्मानंद रूप मुक्ति) पाने के लिए , अस्तित्व के छह पहलुओं जैसे वृद्धावस्था, मृत्यु इत्यादि से मुक्त होने के बाद और प्रकृति से सम्बंधित सभी नामोनिशान मिठाकर
माम् आश्रित्य – मेरे पास आते हैं
ये यतन्ति – जो कोशिश करते हैं
ते – वे
तत् ब्रह्य – जिसे ब्रह्म के नाम से जाना जाता है
कृत्स्नम् आध्यात्मं – और पूर्ण रूप से जिसे आध्यात्म के नाम से जाना जाता है
अखिलं कर्म च – और उन सभी जिन्हें कर्म के रूप में जाना जाता है
विदुः – जानना चाहिए

सरल अनुवाद

जो मेरे पास आत्मानुभव रूप मोक्ष (आत्मानंद रूप मुक्ति) पाने के लिए आते हैं , अस्तित्व के छह पहलुओं जैसे वृद्धावस्था, मृत्यु इत्यादि से मुक्त होने के बाद और प्रकृति से सम्बंधित सभी नामोनिशान मिठाकर, उसके बारे में जानना चाहिए , जिसे ब्रह्म के नाम से जाना जाता है और पूर्ण रूप से जिसे आध्यात्म के नाम से जाना जाता है और उन सभी जिन्हें कर्म के रूप में जाना जाता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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