श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे |
समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा ||
पद पदार्थ
कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!
सिद्धिं प्राप्त: – जिसने ध्यान की दृढ़ अवस्था प्राप्त कर ली है
यथा ब्रह्म आप्नोति – जिस साधन से मनुष्य आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करता है जिसे ब्रह्म कहा जाता है
तथा – उस उपाय को
समासेना – संक्षेप में
मे निबोध – मुझसे सुनो;
(ऐसे ब्रह्म का स्वरूप )
या ज्ञानस्य परा निष्ठा: – वह ब्रह्म ही ध्यान रुपी ज्ञान के परम लक्ष्य है
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! जिस साधन से ध्यान की दृढ़ अवस्था को प्राप्त होकर मनुष्य आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करता है, उस उपाय को मुझसे संक्षेप में सुनो; वह ब्रह्म ही ध्यान रुपी ज्ञान के परम लक्ष्य है |
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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