श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
भक्त्या मामभिजानति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः |
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ||
पद पदार्थ
य: – मैं जो ऐसे स्वभाव और मनोभाव का हूँ
यावान् च अस्मि – मुझमें जो ऐसी गुण और धन है
मां – ऐसा मुझे
भक्त्या – (पूर्व में बताई गई) पराभक्ति के द्वारा
तत्त्वतः – सच में
अभिजानाति – जानता है;
मां – मुझे
तत्त्वतः ज्ञात्वा – सच में जानकर
तदनन्तरम् – तत्पश्चात्
तत: – परमभक्ति के द्वारा
मां – मुझे
विशते – पूर्ण रूप से प्राप्त करता है
सरल अनुवाद
जो पुरुष (पूर्व में बताई गई) परभक्ति के द्वारा मुझे सच में ऐसे स्वभाव, मनोभाव, गुण और ऐश्वर्य का, जानता है, वह मुझे यथार्थ रूप से जानकर, तत्पश्चात् परमभक्ति के द्वारा मुझे पूर्ण रूप से प्राप्त करता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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