१८.६२ – तम् एव शरणं गच्छ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

तमेव  शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत |
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ||

पद पदार्थ

भारत – हे भरत कुल के वंशज!
तम् एव – परमेश्वर का (मेरा)
सर्वभावेन – सभी प्रकार से
शरणं गच्छ – अनुसरण करो;
तत् प्रसादात् – उनकी कृपा से
परां शान्तिं – सभी बंधनों से मुक्ति पाकर
शाश्वतम् स्थानं च – परमपद जो मोक्ष का शाश्वत धाम है
प्राप्स्यसि – प्राप्त करोगे

सरल अनुवाद

हे भरत कुल  के वंशज!  सभी प्रकार से परमेश्वर का (मेरा) अनुसरण करो; उनकी कृपा से तुम सभी बंधनों से मुक्ति पाओगे  और परमपद को प्राप्त करोगे जो मोक्ष का शाश्वत धाम है |

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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