१८.६४ – सर्वगुह्यतमं भूयः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

सर्वगुह्यतमं भूय: श्रुणु मे परमं वच: |
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ||

पद पदार्थ

सर्व गुह्यतमं – भक्ति योग जो इन सभी रहस्यों में अति गोपनीय है
मे – मेरा
परमं वच: – सर्वोच्च वचन
भूय: श्रुणु – फिर से सुनो;
मे – मुझे
दृढम् इष्ट: असि – अत्यन्त प्रिय हो
इति तत : – के कारण
ते –तुम्हारे लिए
हितं वक्ष्यामि – जो अच्छा है उसे बताऊँगा

सरल अनुवाद

भक्तियोग के विषय में मेरा  सर्वोच्च  वचन फिर से सुनो, जो रहस्यों में अति गोपनीय है। तुम मुझे अत्यन्त प्रिय होने के कारण मैं ,  तुम्हारे लिए जो अच्छा है ,उसे बताऊँगा ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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