श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन |
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति ||
पद पदार्थ
इदं – यह शास्त्र (जो मैंने तुम्हें गोपनीय रूप से समझाया था)
ते – तुम्हारे द्वारा
अतपस्काय न (वाच्यं) – उसे नहीं कहना चाहिए जिसने तपस्या नहीं की है;
अभक्तया – जो (तुम्हारे और मेरे प्रति) भक्तिमान नहीं है
कदाचन (न वाच्यं) – कभी भी नहीं कहना चाहिए;
असुश्रुषवे च – जो सुनने में इच्छुक नहीं है
न (वाच्यं) – नहीं कहना चाहिए;
मां – मुझे
य: – जो
अभ्यसूयति – घृणा करता है(उसे भी)
न वाच्यं – नहीं कहना चाहिए
सरल अनुवाद
यह शास्त्र (जो मैंने तुम्हें गोपनीय रूप से समझाया था) तुम्हारे द्वारा उसे नहीं कहना चाहिए जिसने तपस्या नहीं की है; इसे उससे कभी नहीं कहना चाहिए जो (तुम्हारे और मेरे प्रति) भक्तिमान नहीं है ;इसे उससे नहीं कहना चाहिए जो सुनने में इच्छुक नहीं है तथा इसे उससे भी नहीं कहना चाहिए जो मुझसे घृणा करता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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