१८.६७ – इदं ते नातपस्काय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

<< अध्याय १८ श्लोक ६६

श्लोक

इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन |
न चाशुश्रूषवे  वाच्यं न च मां  योऽभ्यसूयति ||

पद पदार्थ

इदं – यह शास्त्र (जो मैंने तुम्हें गोपनीय रूप से समझाया था)
ते – तुम्हारे द्वारा
अतपस्काय न (वाच्यं) – उसे नहीं कहना चाहिए जिसने तपस्या नहीं की है;
अभक्तया – जो (तुम्हारे और मेरे प्रति) भक्तिमान नहीं है
कदाचन (न वाच्यं) – कभी भी नहीं कहना चाहिए;
असुश्रुषवे च – जो सुनने में इच्छुक नहीं है
न (वाच्यं) – नहीं कहना चाहिए;
मां – मुझे
य: – जो
अभ्यसूयति – घृणा करता है(उसे भी)
न वाच्यं – नहीं कहना चाहिए

सरल अनुवाद

यह शास्त्र (जो मैंने तुम्हें गोपनीय रूप से समझाया था) तुम्हारे द्वारा उसे नहीं कहना चाहिए जिसने तपस्या नहीं की है; इसे उससे कभी नहीं कहना चाहिए जो (तुम्हारे और मेरे प्रति) भक्तिमान  नहीं है ;इसे उससे नहीं कहना चाहिए जो सुनने में इच्छुक नहीं है तथा इसे उससे भी नहीं कहना चाहिए जो मुझसे घृणा करता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १८ श्लोक ६८

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/18-67/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org