१८.६८ – य इदं परमं गुह्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

य इदं परमं गुह्यं मद्भक्तेश्वभिधास्याति |
भक्तिं  मयि परां  कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय: ||

पद पदार्थ

य :- जो
परमं गुह्यं इदं – यह शास्त्र जो अत्यंत गोपनीय है
मद्भक्तेषु – मेरे भक्तों को
अभिधास्याति – समझाता है (वह)
मयि – मेरी ओर
परां भक्तिं कृत्वा – परम भक्ति में लीन होगा
माम् एवैष्यति – मुझे ही प्राप्त करेगा
असंशय: – यह निसंदेह है

सरल अनुवाद

जो मनुष्य इस अत्यन्त गोपनीय शास्त्र को मेरे भक्तों को समझाता है, वह मुझमें परम भक्ति में लीन होंगे और मुझे ही प्राप्त करेगा ; यह निसंदेह है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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