१.३५ – एतां न हन्तुमिच्छामि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन ।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ৷৷

पद पदार्थ

मधुसूदन – हे मधुसूदन ( जिसने मधु नाम के राक्षस को मार डाला ) !
घ्नत: अपि – अगर वो हमे मारने की इच्छा व्यक्त करे फिर भी
एतान् – उनको
हन्तुं न इच्छामि – मारने की कोई अभिलाषा मुझे नहीं है
त्रैलोक्यराज्यस्य अपि हेतोः – तीनो लोकों की शासन करने के लिए भी
किं नु महीकृते – केवल इस संसार की शासन के लिए भला क्यों मारूँ ?

सरल अनुवाद

हे मधुसूदन ! अगर वो हमे मारने की इच्छा व्यक्त करे फिर भी, उनको मैं नहीं मारूँगा | तीनो लोकों की शासन करने के लिए भी उनको मारने की कोई अभिलाषा मुझे नहीं है तो फिर केवल इस संसार की शासन के लिए भला क्यों मारूँ ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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