१०.१८ – विस्तरेणात्मनो योगं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।
भूयः कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् ॥

पद पदार्थ

जनार्दन – हे जनार्दन (शत्रुओं का नाश करने वाले)!
आत्मन: – आपके
योगं – शुभ गुणों से युक्त होने का
विभूतिं च – नियंत्रण का भी
भूयः – पुनः
विस्तरेण कथय – विस्तार से वर्णन करें
अमृतं शृण्वत: – आपकी अमृतमयी महिमा को सुनने पर
मे – मुझे
तृप्ति: – संतुष्टि
नास्ति हि – नहीं हो रही है

सरल अनुवाद

हे जनार्दन (शत्रुओं का नाश करने वाले) ! आपके शुभ गुणों से युक्त होने का और आपके नियंत्रण का भी पुनः विस्तार से वर्णन करें | आपकी अमृतमयी महिमा को [बार-बार] सुनने पर भी मुझे तृप्ति नहीं हो रही है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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