१५.२ – अधश्च मूलान्यनुसंततानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

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श्लोक

अधश्च मूलान्यनुसंततानि कर्मानुबन्धीनि  मनुष्यलोके  ||

पद पदार्थ

(इस भौतिक क्षेत्र के लिए जो एक वृक्ष है)
अध: मनुष्य लोके च – मनुष्य लोक (पृथ्वी) में, जो नीचे है
कर्मानुबन्धीनि – कर्म का बंधन
मूलानी – जड़ें
अनुसंततानि – फैले हुए हैं

सरल अनुवाद

(इस भौतिक क्षेत्र के लिए जो एक वृक्ष है) मनुष्य लोक (पृथ्वी) में, जो नीचे है, जड़ें, अर्थात, कर्म का बंधन फैले हुए हैं|

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १५ श्लोक २.५

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