१५.२० – इति गुह्यतमं शास्त्रं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

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श्लोक

इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयाऽनघ |
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ||

पद पदार्थ

अनघ – हे निष्पाप!
भारत – हे भरतवंशी!
इति – इस प्रकार
इदं – यह पुरूषोत्तम विद्या
गुह्यतमं शास्त्रं – अत्यंत गोपनीय शास्त्र
मया – मेरे द्वारा
उक्तं – (तुम्हें) उपदेशित की गई है
एतत् बुद्ध्वा – यह जानकर
बुद्धिमान् स्यात् – मनुष्य मुझे प्राप्त करने में बुद्धिमान हो जायेगा
कृत कृत्य: च – इस प्राप्ति के लिए सभी आवश्यक कार्य पूर्ण कर लेगा

सरल अनुवाद

हे निष्पाप! हे भरतवंशी! इस प्रकार यह अत्यंत गोपनीय शास्त्र, पुरूषोत्तम विद्या, मेरे द्वारा (तुम्हें) उपदेशित की गई है । यह जानकर मनुष्य मुझे प्राप्त करने में बुद्धिमान हो जायेगा और इस प्राप्ति के लिए सभी आवश्यक कार्य पूर्ण कर लेगा।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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