१८.११ – न हि देहभृता शक्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

<< अध्याय १८ श्लोक १०

श्लोक

न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।।

पद पदार्थ

देह भृता – शरीर को धारण करने वाली आत्मा द्वारा
कर्माणि – कर्मों
अशेषतः त्यक्तुं – पूर्णतः त्याग करना
न हि शक्यं – क्या संभव है?
य: – वह
कर्म फल त्यागी – जो कर्मों के फलको त्यागता है
स: तु – उसे ही
त्यागी इति – त्यागी
अभिधीयते – कहा जाता है

सरल अनुवाद

क्या शरीर को धारण करने वाली आत्मा द्वारा कर्मों का पूर्णतः त्याग करना संभव है? नहीं | वह जो कर्मों के फलको त्यागता है, उसे ही त्यागी कहा जाता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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