श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्।।
पद पदार्थ
यत् – जो सुख
अग्रे च – प्रारम्भ में
अनुबन्धे च – तथा पश्चात्
आत्मन: – आत्मा को
मोहनं – मोहग्रस्त करता है
निद्रा आलस्य प्रमादोत्थं – जो निद्रा, आलस्य तथा प्रमाद के कारण होता है
तत् सुखं – वह सुख
तामसम् उदाहृतम् – तामस सुख कहा जाता है
सरल अनुवाद
जो सुख प्रारम्भ में तथा पश्चात् भी आत्मा को मोहग्रस्त करता है, तथा जो निद्रा, आलस्य तथा प्रमाद के कारण होता है, वह तामस सुख कहा जाता है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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