१८.४० – न तत् अस्ति पृथिव्यां वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

न तदस्ति पृथिव्यां  वा दिवि देवेषु वा पुन: |
सत्त्वं  प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिस्स्यात् त्रिभिर्गुणै: ||

पद पदार्थ

पृथिव्यां वा – इस पृथ्वी पर मनुष्यों 
दिवि देवेषु वा पुन: – स्वर्ग में देवताओं 
एभि: त्रिभि: प्रकृतिजै: गुणै: मुक्तं – इन  तीन भौतिकवादी  गुणों से मुक्त
यत् सत्त्वं  स्यात् – कोई भी जीव 
तत् न अस्ति – जीव उपस्थित  नहीं है

सरल अनुवाद

इस पृथ्वी पर मनुष्यों  और स्वर्ग में देवताओं  में से  इन तीन भौतिकवादी गुणों से मुक्त कोई भी जीव उपस्थित नहीं  है ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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