१८.५७ – चेतसा सर्वकर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्पर: |
बुद्धियोगम् उपाश्रित्य मच्चित्त: सततं भव ||

पद पदार्थ

चेतसा – इस विचार के साथ (कि आत्मा मेरी है, और वह मेरे द्वारा नियंत्रित है)
सर्व कर्माणि – सभी कर्मों को
मयि संन्यस्य – मुझे अर्पण करते हुए
मत्पर: – मुझे ही फल मानते हुए
बुद्धि योगम् उपाश्रित्य – पहले बताए गए पूर्ण त्यागों के साथ
सततं – सदैव
मच्चित्त: भव – अपना मन को मुझ पर केन्द्रित करो

सरल अनुवाद

इस विचार से (कि आत्मा मेरी है और वह मेरे द्वारा नियंत्रित है) सभी कर्मों को मुझे अर्पण करते हुए, मुझे ही उसका फल मानते हुए, पहले बताए गए पूर्ण त्यागों  के साथ, अपने मन को सदैव मुझमें ही केन्द्रित करो।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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