श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध: स्वेन कर्मणा |
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात् करिष्यस्यावशोऽपि तत् ||
पद पदार्थ
कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!
स्वभावजेन – तुम्हारे पूर्व कर्मों के कारण
स्वेन कर्मणा – वीरता जो तुम्हारा कर्म है
निबद्ध: – बद्ध होनेके कारण
अवश : – तुम्हारे शरीर के वश में होकर
यत् मोहात् कर्तुं न इच्छसि तत् – तुम अज्ञानता के कारण जो युद्ध लड़ने को तैयार नहीं हो
करिष्यसि अपि – तुम उसे करोगे (अन्य कारणों से, भले ही मेरे आदेश का पालन न करो)
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! तुम अज्ञानता के कारण जिस युद्ध को लड़ने को तैयार नहीं हो, उस युद्ध को तुम अपने पूर्व कर्म के कारण उत्पन्न पराक्रम से बँधे हुए तथा शरीर के वश में होकर ,तुम (अन्य कारणों से, भले ही मेरे आदेश का पालन न करो ) उसे करोगे ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/18-60/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org