१८.७२ – कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

<< अध्याय १८ श्लोक ७१

श्लोक

कच्चिदेतच्छ्रुतं  पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा |
कच्चिदज्ञानसम्मोह: प्रनष्टस्ते  धनञ्जय ||

पद पदार्थ

पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
एतत् – यह शास्त्र (जो मेरे द्वारा समझाया गया था )
त्वया – तुम से
एकाग्रेण चेतसा – एकाग्र मन से
कच्चित् श्रुतम् – सुना गया ?
धनञ्जय – हे धनंजय!
ते – तुम्हारा
अज्ञान सम्मोह: – अज्ञानता में निहित भ्रम
कच्चित् प्रनष्ट:- नष्ट हुआ?

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! क्या यह शास्त्र (जो मेरे द्वारा समझाया गया था) तुमसे  एकाग्र मन से सुना गया ? हे धनंजय! क्या तुम्हारा अज्ञानता में निहित भ्रम नष्ट हुआ?

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १८ श्लोक ७३

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/18-72/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org