श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा |
कच्चिदज्ञानसम्मोह: प्रनष्टस्ते धनञ्जय ||
पद पदार्थ
पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
एतत् – यह शास्त्र (जो मेरे द्वारा समझाया गया था )
त्वया – तुम से
एकाग्रेण चेतसा – एकाग्र मन से
कच्चित् श्रुतम् – सुना गया ?
धनञ्जय – हे धनंजय!
ते – तुम्हारा
अज्ञान सम्मोह: – अज्ञानता में निहित भ्रम
कच्चित् प्रनष्ट:- नष्ट हुआ?
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! क्या यह शास्त्र (जो मेरे द्वारा समझाया गया था) तुमसे एकाग्र मन से सुना गया ? हे धनंजय! क्या तुम्हारा अज्ञानता में निहित भ्रम नष्ट हुआ?
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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