श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
व्यासप्रसादात् श्रुतवान् एतद्गुह्यमहं परम् |
योगं योगेश्वरात् कृष्णात् साक्षात् कथयत: स्वयम् ||
पद पदार्थ
व्यास प्रसादात् – व्यास की कृपा से
(दिव्य नेत्र और कान प्राप्त कर)
एतत् – इस
परम् – परम
गुह्यं योगं – योग का यह रहस्य
स्वयं कथयत: योगेश्वरात् कृष्णात् – जिसे शुभ गुणों से पूर्ण कृष्ण स्वयं बोले
अहम् – मैंने
साक्षात् श्रुतवान् – सीधे सुना
सरल अनुवाद
व्यास की कृपा से (दिव्य नेत्र और कान प्राप्त कर) योग के इस परम रहस्य को स्वयं बोलने वाले शुभ गुणों से पूर्ण कृष्ण से मैंने सीधे सुना।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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