श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
नेहाभिक्रम नाशोSस्ति प्रत्यवायो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥
पद पदार्थ
इह – कर्म योग में
अभिक्रमनाश: – शुरू किए गए प्रयासों में हानि
न अस्थि – नहीं है
(भले ही शुरुआत के बाद रोक दिया गया हो)
प्रत्यवाय: – दोष
न विद्यते– नहीं है
अस्य धर्मस्य – कर्म योग नाम के इस धर्म में
स्वल्पं अपि -थोड़ा सा प्रयास भी
महताः – बहुत बड़ा
भयात – संसार के भय से (बंधन)
त्रायते – संरक्षण करता है
सरल अनुवाद
इस कर्म योग में, प्रारम्भ किये गये प्रयत्नों में कोई हानि नहीं होती है। (भले ही आरम्भ करके रोक दिया जाए) कोई दोष नहीं है; कर्म योग नाम के इस धर्म में, थोड़ा प्रयास भी संसार (बंधन) के महान भय से रक्षा करेगा|
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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