२.५५ – प्रजहाति यदा कामान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

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श्लोक

श्री भगवानुवाच
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥

पद पदार्थ

श्री भगवान – भगवान (श्री कृष्ण)
उवाच – बोले
पार्थ – हे पार्थ ( पृथा के पुत्र)!
आत्मना – मन से  (जो आत्मा पर केंद्रित है)
आत्मनि एव  – आत्मा में  ही  (जो आनंदमय है)
तुष्ट:- स्नेहशील होना 
मनोगतान् – मन में
सर्वान् कामान् – सभी इच्छाएं (अन्य परिणामों में केंद्रित )
यदा  – जब
प्रजहाती – पूरी तरह से त्याग देते हैं
तदा  – तब 
स्थित प्रज्ञा: उच्च्ते –उसे  स्थित प्रज्ञ कहा जाता है

सरल अनुवाद

भगवान (श्री कृष्ण) बोले, हे पृथा के पुत्र! जब कोई अपने आत्मा (जो आनंदमय है) के प्रति मन (जो आत्मा पर केंद्रित है) से स्नेहशील हो जाता है, और (अन्य परिणामों में केंद्रित) सभी इच्छाओं  को पूरी तरह से त्याग देता है, उस समय, वह एक स्थितप्रज्ञ के रूप में जाना जाता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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