३.२ – व्यामिश्रेणेव वाक्येन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं  मोहयसीव मे ।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोSहमाप्नुयाम् ॥ 

पद पदार्थ

व्यामिश्रेण – विरुद्ध 
वाक्येन इव – वचन 
मे –  मेरा अपना
बुद्धिं  – बुद्धि
मोहयसी  इव – ऐसा प्रतीत होता है कि तुम मुझे भ्रमित कर रहे हो 
तत्  – इसलिए
येन – कौनसा वचन 
अहं निश्चित्य – मेरी भविष्य की गतिविधि का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत का निर्धारण करें
श्रेय:- वह अंतिम लक्ष्य
आप्नुयाम् – प्राप्त होगा
एकं  वद  – एक ऐसा (गैर-विरुद्ध ) वचन  दो

सरल अनुवाद

ऐसा प्रतीत होता है कि तुम  अपने विरुद्ध  वचनों  से मेरी बुद्धि को भ्रमित कर रहे हो |  इसलिए एक  ऐसे गैर विरुद्ध वचन  दो जो मेरी भविष्य की गतिविधि का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत को निर्धारित करेगा और  मुझे उस अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा |

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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