३.४२ – इन्द्रियाणि पराण्याहुर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ४१ श्लोक इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥ पद पदार्थ इन्द्रियाणि – दस इन्द्रियाँ ( पॉँच कर्मेन्द्रियाँ और पॉँच ज्ञानेन्द्रियाँ )पराणि – मूल कारण हैं ( ज्ञान का अवरोध करने में )अहु: – कहा जाता है किइन्द्रियेभ्यः … Read more

३.४३ – एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ४२ श्लोक एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे बलिष्ठ भुजाओं वाला !एवं – इस प्रकारबुद्धेः परं – वासना जो अटल दृढ़ से भी बड़ा है ( स्वज्ञान का अवरोध करने में … Read more

३.४१ – तस्मात् त्वमिन्द्रियाण्यादौ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ४० श्लोक तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥ पद पदार्थ हे भरत ऋषभ: – हे भरत वंश के नेता !तस्मात् – जैसे पहले बताया गया है, ज्ञान योग का अभ्यास करना कठिन हैत्वं – तुम ( जो स्वाभाविक से ज्ञानेंद्रीय … Read more

३.४० – इन्द्रियाणि मनो बुद्धिर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३९ श्लोक इन्द्रियाणि मनो बुद्धिर् अस्याधिष्ठानमुच्यते।एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥ पद पदार्थ अस्य – इस वासना के लिएइन्द्रियाणि – सारे इन्द्रियाँमन: – मनबुद्धि – स्थिर बुद्धि ( इन्द्रियों के आनंद में )अधिष्ठानं – अनुसरण करने के माध्यम हैंउच्यते – कहा जाता हैएष: … Read more

३.३९ – आवृतं ज्ञानमेतेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३८ श्लोक आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥ पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र !दुष्पूरेण – असंभव विषयों को प्राप्त करने की कामना करना और बिना कोई तृप्तिअनलेन – ( उन पदार्थों में भी जिनको प्राप्त कर सकते हैं … Read more

३.३८ – धूमेनाव्रियते वह्निर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३७ श्लोक धूमेनाव्रियते वह्निर् यथादर्शो मलेन च।यथोल्बेनावृतो गर्भस् तथा तेनेदमावृतम्॥ पद पदार्थ वह्नि: – अग्नियथा धूमेन आव्रियते – जैसे धुआँ से व्याप्त हैआदर्श: – दर्पणयथा च मलेन ( आव्रियते ) – जैसे धूल से व्याप्त हैगर्भ: – गर्भयथा च उल्बेन … Read more

३.३७ – काम एष क्रोध एष

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३६ श्लोक श्रीभगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥ पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दियाएष: – वह कारण जिसके बारे में तुमने प्रश्न किया ( लौकिक सुख )रजोगुण समुद्भवः – रजो … Read more

३.३६ – अथ केन प्रयुक्तोऽयं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३५ श्लोक अर्जुन उवाचअथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन कहावार्ष्णेय – हे कृष्ण , वृष्णिवंशी !अयं – वह मनुष्य जो ज्ञान योग करने का प्रयत्न करता हैअनिच्छन्नपि – लौकिक सुखों में … Read more

३.३५ – श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३४ श्लोक श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात् स्वनुष्ठितात्‌ ।स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥ पद पदार्थ स्वधर्म: – ( वो मनुष्य जो अचित तत्व / शरीर से जुड़ा हो ) कर्म योग जो स्वाभाविक माध्यम हैविगुणः ( अपि ) – दोष से … Read more

३.३४ – तयोर्न वशमागच्छेत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३३.५ श्लोक तयोर्न वशमागच्छेत् तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ पद पदार्थ तयो: – प्रेम और क्रोधवशं न आगच्छेत् – कोई भी वशीभूत नहीं होना चाहिएतौ – वो प्रेम और क्रोधअस्य – मुमुक्षु के लिए , जो कि ज्ञान योग का अनुयायी होपरिपन्थिनौ … Read more