४.१० – वीतरागभयक्रोधा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता: |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावम् आगता: ||

पद पदार्थ

ज्ञान तपसा पूता: – अवतार रहस्य ज्ञान ( भगवान की अवतारों का सत्य जानकर ) की तपस्या से सादन की प्राप्ति के बाधाओं को हटाके
बहव: – कई
माम् उपाश्रिता: – मुझमे ध्यान करते हुए
वीत राग भय क्रोध: – मुक्त रहना आसक्ति से ( लौकिक विषयों में ) , भय से ( उन लौकिक विषयों को प्राप्त न करने से ) और क्रोध से ( उन लोगों पर जो इन लौकिक विषयों को प्राप्त करने से रोके )
मन् मया: – उनके मन पूरी तरह मुझमे व्यस्त होकर
मद्भावम् आगता: – मोक्ष स्तिथि, को प्राप्त करते हैं , जो मेरे स्तिथि की समान है

सरल अनुवाद

अवतार रहस्य ज्ञान की तपस्या से, सादन की प्राप्ति के बाधाओं को हटाके, कई , मुझमे ध्यान करते हुए, आसक्ति से ( लौकिक विषयों में ) , भय से ( उन लौकिक विषयों को प्राप्त न करने से ) और क्रोध से ( उन लोगों पर जो इन लौकिक विषयों को प्राप्त करने से रोके ) मुक्त होकर, उनके मन पूरी तरह मुझमे व्यस्त होकर, मोक्ष स्तिथि, को प्राप्त करते हैं , जो मेरे स्तिथि के समान है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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