४.११ – ये यथा मां प्रपद्यन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ||

पद पदार्थ

ये – वे
माम् – मुझे
यथा – जिस प्रकार वे कामना करते हैं
प्रपद्यन्ते – मेरा आश्रयण करते हैं
तथा एव – ( मैं उपलब्ध होता हूँ ) उसी प्रकार जैसे उनकी कामना थी
अहम् – मैं
तान् – उन्हें
भजामि – उन लोगों को प्राप्त होता हूँ
पार्थ – हे पृथा ( कुंती ) के पुत्र !
मनुष्या: – सभी लोग
मम वर्त्म – मेरे गुणों का
सर्वश: – सब प्रकार से ( अपनी अपेक्षा के अनुसार )
अनुवर्तन्ते – अनुभव करते हुए जीते हैं

सरल अनुवाद

मैं उन लोगों को प्राप्त होता हूँ जो मेरा आश्रयण करते हैं , जिस प्रकार वे मेरी कामना करते हैं उसी प्रकार जैसे उनकी कामना थी ( मैं उपलब्ध होता हूँ ) | हे पृथा ( कुंती ) के पुत्र ! सभी लोग सब प्रकार से ( अपनी अपेक्षा के अनुसार ) मेरे गुणों का अनुभव करते हुए जीते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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