४.९ – जन्म कर्म च मे दिव्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत: ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ।।

पद पदार्थ

अर्जुन – हे अर्जुन !
मे – मेरे
दिव्यं – आध्यात्मिक ( दिव्य )
जन्म – अवतार
कर्म – क्रियाओं
य: – जो भी
एवं – जैसे पहले समझाया गया हो
तत्त्वत: – वैसे ही
वेत्ति – तपस्या करता है
स: – वह
देहं – इस शरीर
त्यक्त्वा – त्यागने के बाद
पुन: – फिर से
जन्म – पैदा ( दुसरे भौतिक शरीर को स्वीकार करना )
न एति – नहीं प्राप्त करता
( मगर )
माम् एति – मुझे प्राप्त करता है

सरल अनुवाद

हे अर्जुन ! जो भी मेरे आध्यात्मिक ( दिव्य ) अवतार और क्रियाओं पर , जैसे पहले समझाया गया हो, वैसे ही , तपस्या करता है , इस शरीर को त्यागने के बाद वह फिर से पैदा ( दुसरे भौतिक शरीर को स्वीकार करना ) नहीं होगा मगर मुझे प्राप्त करता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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